SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -३६२ ] उपासकाध्ययन अहमेतदुपयाचितमैशान्याः स्पर्शयितुं प्रगच्छामि । यद्यत्र तातो रोषिष्यति तदा तद्रोषमहमपनेष्यामि ।' ततो धनकीर्तिमन्दिरमगात्, महायलश्च कृतान्तोदरकन्दरम् । श्रीदत्तः सुतमरणशोकातोपान्तः प्रकाशिताशेषवृत्तान्तः 'सकलनिकाय्यकार्यानुष्ठानपरमेष्ठिनि श्रेष्ठिनि मन्मनोहादचन्द्रलेखे विशाखे, कथमयं वैधेयो ममान्षयोपायहेतुः प्रयुक्तोपायविलोपनकेतुः प्रवाशयितव्यः।' विशाखा-'भेष्ठिन्, भेलभावात्सर्वमनुपपन्नं त्वया चेष्टितम् । अतः कुरुण्डतो भीतः कुक्कुटपोत इव तूष्णीमास्स्व । भविष्यति भवतोऽ. शेषं मनीषितम्' इत्याभाष्य अपरेधुर्दयितजीवितव्यतोदकेषु मोदकेषु विषं संचार्य 'सुते श्रीमते, य एते कुन्दकुमुदकान्तयो मोदकास्ते स्वकीयाय कान्ताय देयाः, "श्यावश्यामाकश्यामलरुचयश्च जनकाय' इति समर्पितसमया' समासनमरणसमया सरिति संवैनायानुससार । श्रीमतिः 'यञ्चोक्ष भक्ष्यन्तत् प्रतीक्ष्याय ताताय वितरीतव्यम्' इत्यवगत्याविज्ञातसवित्रीचित्तकौटिल्या निःशल्यहदया तानेतयोर्विपर्ययेणावीवृधत् । विशाखा पतिशन्यमरण्यसामान्यमगारमाप्य परिदेव्यय सुचिरं पुनः 'पुत्रि, किमन्यथा भवति महामुनिभाषितम् । केवलं तव "वापेन मया च' थेात्मीयान्वयविलोपाय कृत्योत्थापनमाचरितम्। घरको लौट जाओ। देवीको यह भेंट समर्पित करनेके लिए मैं जाता हूँ। यदि पिताजी रुष्ट होंगे तो उनके रोषको मैं दूर कर दूंगा।' इस बात-चीतके बाद धनकीर्ति घरको चला गया और महावल यमराजके पेटमें समा गया। पुत्र-मरणके शोकसे विह्वल होकर श्रीदत्तने अपनी पत्नी विशाखासे सब समाचार कह दिया और बोला--सब गृहकार्योंके करनेमें चतुर सेठानी! यह अभागा मेरे वंशका अनिष्ट करनेवाला है, इसके मारनेका जो-जो उपाय किया जाता है वही व्यर्थ हो जाता है। इसे कैसे मारना चाहिए।' ___ 'सेठजी ! अविचारके कारण आपके सब उपाय व्यर्थ हुए। अतः बिलावसे डरे हुए मुर्गेके बच्चेकी तरह आप चुप होकर बैठो । आपकी सब इच्छाएँ पूर्ण होंगी।' । दूसरे दिन सेठानीने अपने पतिके जीवनको नष्ट करनेवाले लड्डुओंमें जहर मिलाकर अपनी पुत्री श्रीमतीसे कहा--'पुत्री ! ये जो सफेद कमलकी तरह स्वच्छ लड्डू हैं इन्हें अपने पतिको देना और ये जो काले धान्यके समान काले रंगके लड्डू हैं इन्हें अपने पिताको देना ।' इतना कहकर सेठानी नदीमें स्नान करने चली गयी। श्रीमतीको माताके चित्तकी कुटिलताका पता नहीं था। उसने सोचा कि जो सुन्दर लड्डू हैं उन्हें पूज्य पिताको देना चाहिए। अतः उसने जहर मिले सफेद लड्डू तो पिताको दिये और काले लड्डू अपने पतिको दिये। जब विशाखा लौटी तो उसका पति मर चुका था। वह बहुत रोई फिर बोली-'पुत्री ! महामुनियोंका कथन कैसे झूठा हो सकता है ? तेरे पिताने और मुझ वृद्धाने अपने वंशका नाश करनेके लिए १. नभसितम् । २. दातुम् । ३. गृहकार्य । ४. निर्भाग्यः । ५. वंश । ६. मम कृतानेककपटविनाशसमर्थः । ७. प्रणाश-ब०। मारणीयः । ८. वद्ध वा अविचारक । ९. मार्जारात । १०. पीडकेष । ११.श्यावः स्यात् कपिशः धूसरारुणः। १२. मता-अभिप्राया। १३. स्नानाय। १४. चोक्षः सुन्दरगीतयोः । १५. पूज्याय । १६. देयम् । १७. पित्रा। १८. वृद्धया ।
SR No.022417
Book TitleUpasakadhyayan
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2013
Total Pages664
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy