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________________ १६२ सोमदेव विरचित [कल्प २६, श्लो० ३६२वाक्प्रसरं पितरं गणयति, तदास्मै निकामं सप्तपुरुषपर्यन्तपरीक्षितान्वयसंपत्तये धनकीर्तये कूपदप्रक्रमेण 'विजदेवमुखसमक्षमविचारापेक्षं श्रीमतिर्दातव्या' इति । ततो यथाम्नातविशिखमिमं लेखमामुर्घ्य समाचरितगमनायामनगसेनायां धनकीर्तिश्चिरेण "विद्राणसान्द्रनिद्रोद्रेक सोत्सेकमुत्थाय प्रयाय च श्रीदत्तनिकेतनं जननीसमन्विताय महाबलाय प्रदर्शितलेखः श्रीमतीसखोऽभवत्। श्रीदत्तो वार्तामिमामाकर्ण्य प्रतूर्णे प्रत्यावर्त्य निधीय च तबधाय राजधानीबाहिरिकायां चण्डिकायतने कृतसंकेतं संनद्धवपुषं पुरुषं कश्चराचरणपिशाची "देवद्रीची च परिप्राप्तोदवसितो रहसि धनकीर्ति मुहुराहूय बहुकूटकपटमतिरेवमावभाषे–'वत्स, मदीये कुले किलैवमाचारो यदुत यामिनीमुखे कात्यायिनीप्रेमुखे प्रदेशे प्रतिपन्नाभिनवकङ्कणबन्धेन स्तनन्धयागोघेन महारजेनरसरकांकसमाश्रयः स्वयमेव मार्षमयमोरमौकुंलिबलिरुपहर्तव्यः।' धनकीर्तिः–'तात, यथा तातादेशः' इति निगीर्य गृहीतकुलदेवतादेयहन्तकारोपकरणस्तेन श्यालेन महाबलेन पुरप्रदेशाभिःसरमवलोकितः। समालापितध-'हहो धनकीत, प्रवर्धमानान्धकारावभ्यायामस्यां लायामवर्गणः कोचलितोऽसि ।' 'महाबल, मातुलनिदेशान मसितनिवेदनाय दुर्गालये ।' 'यद्येवं नगरजनासंस्तुतत्वात्त्वं निवासं प्रति निवर्तस्व । प्रकार था—'यदि सेठानी मेरे वचनोंको मानती है और यदि महाबल मुझे अपना पिता मानता है तथा मेरे वचनोंको अनुल्लय समझता है तो इस धनकीर्तिको, जिसके वंशकी श्रेष्ठताकी परीक्षा सात जनोंके सामने कर ली गयी है, बिना किसी विचारके अमिकी साक्षी पूर्वक दहेजके साथ श्रीमतीको सौंप देना।' पहलेकी ही तरह इस लेखको उसके गलेमें बाँधकर अनङ्गसेना चली गयी। धनकीर्ति बहुत देर तक गहरी नींदमें सोता रहा। फिर उठकर श्रीदत्तके घर पहुंचा और माता सहित महाबलको पत्र देकर श्रीमतीका पति बन गया। श्रीदत्त इस समाचारको सुनकर शीघ्र ही लौट आया और राजधानीके बाहर स्थित चण्डीदेवीके मन्दिरमें धनकीर्तिको मारनेके लिए एक सशस्त्र मनुष्यको तथा कुत्सित काम करनेमें पिशाचीसमान देवीको नियुक्त करके घर आया । और एकान्तमें धनकीर्तिको बुलाकर वह कपटी बोला-'वत्स ! मेरे कुलकी ऐसी रीति है कि जिस कन्याका नया विवाह होता है उसका पति रात्रिके समय कुसुम्भेके रंगसे रंगे हुए वस्त्र पहनकर स्वयं ही चण्डीके मन्दिरमें उड़दसे बने हुए मोर और कौवेकी बलि देता है।' 'जैसी आज्ञा' कहकर धनकीर्ति कुलदेवताको अर्पित करनेकी सामग्री लेकर घरसे निकला। सामनेसे आते हुए उसके साले महाबलने उसे देखा और पूछा- 'धनकीर्ति ! इस अन्धेरी रातमें अकेले कहाँ जाते हो ?' । 'महाबल ! मामाकी आज्ञासे बलि देनेके लिए दुर्गाके मन्दिरको जाता हूँ।' 'यदि ऐसा है तो तुम्हारा जाना ठीक नहीं है । नगरके आदमी क्या कहेंगे ! अतः तुम १. जामातदेयं वस्तु सहिरण्यकन्यादायी कूपदः कथ्यते । २. अग्निसाक्षिकम् । ३. मार्गम् । ४. कण्ठे बध्वा । ५. उपशान्त । ६. सगर्वम् । ७. गत्वा । ८. भर्ता । ९. गोविन्दगृहात् स्वगृहमागत्य । १०. पुरुषं स्थापयित्वा । ११. कुत्सितं । १२. चण्डिकां । १३. गृह । १४. प्राङ्गणे । १५. कुसुम्भ । १६. रक्तवस्त्रेण वेष्टितः । १७. माषधान्येन घटित । १८. मयूर-काक । १९. दातव्यः । २०. दान । २१. एकाकी । २२. देय वस्तु । नमस्तित-जः।
SR No.022417
Book TitleUpasakadhyayan
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2013
Total Pages664
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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