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________________ उपासकाध्ययन -३६२ ] प्राप्तप्रसवदिवसा सती सुतमसूत । श्रीदत्तः-''चित्रभानुरिवायमाश्रयाश: स्खलु बालिशः। तदसंजातस्नेहायामेवास्य जनन्यामुपांशुदण्ड: श्रेयान्' इति परामृश्य प्रसूतिदुःखेनातुच्छमूर्छापाश्रयां धनश्रियमाकलय्य निजपरिजनजरतीमुखेन 'प्रमीत एवायं तनयः संजातः' इति प्रसिद्धिं विधायाकार्य चैकमाचरितोपचारप्रपञ्चं श्वपचं जिलाझीरहस्यनिकेतः कृतापायसंकेतस्तं स्तन्यपमेतस्मै समर्पयामास। सोऽपि जनंगमः स्वर्भानुप्रभेण करेण रामरश्मिमिव तं स्तनन्धयमुपरुध्य निःशेलाकावकाशं देशमाश्रित्य पुण्यपरमाणुपुजमिव शुभशरीरभाजमेनमवेक्ष्य संजातकरुणारसप्रसरप्रसन्नमुखः सुखेन विनिधाय स्वकीयमेटीकत । पुनरस्यैवाधरभवभगिनीपतिरशेषापणिकपणपरमेष्ठी इन्द्रदत्तश्रेष्ठी विक्रयाडम्बरितशण्डमण्डलाधीनं पेठोपकण्ठगोष्ठीनमनुसृतो वत्सीयविषयसनीडक्रीडागतगोपालबालकलेपनपरम्परालापाद्वत्सेतरतानकसंतानपरिवृतमनेकचन्द्रकान्तोपलान्तरालनिलीनमरुणमणिनिधानमिव तं जातेमुपलभ्य स्वयमदृष्टनन्दनवदनत्वात्त बुद्धया साध्वनुरुभ्य 'स्तनन्धयावधानधृतबोधे राधे, तवायं गूढगर्भसंभवस्तनूद्भवः' इति प्रवर्धितप्रसिद्धिर्महान्तमपत्योत्पत्तिमहोत्सवमकार्षीत् । नहीं होता' यह सोचकर श्रीदत्तने विषधर सर्पकी तरह अपना मन अपने दुष्ट संकल्प की ओर लगाया। पूरे दिन होनेपर धनश्रीने पुत्रको जन्म दिया। श्रीदत्तने सोचा-'यह बालक आगकी तरह अपने आश्रयको ही खानेवाला है। इसलिए माताका इसपर स्नेह उत्पन्न होनेके पहले ही इसका गुप्त वध करा डालना श्रेष्ठ है।' प्रसूतिके कष्टसे धनश्रीको एकदम बेहोश देखकर उसने अपने कुटुम्बकी एक बुढ़ियाके द्वारा यह प्रसिद्ध करा दिया कि बच्चा मरा हुआ ही पैदा हुआ है। और घूस वगैरह देकर एक चाण्डालको इस कार्यके लिए तैयार किया तथा उसे बुलाकर उस कुटिल भाषाके रहस्यमें विशारद श्रीदत्तने उसे मारनेका संकेत करके बालकको सौंप दिया। राहुके समान हाथके द्वारा सूर्यके समान उस बालकको उठाकर वह चाण्डाल एकान्त स्थानमें ले गया। वहाँ पुण्य परमाणुओंके पुंजकी तरह इस सुन्दर बालकको देखकर उसे दया आ गयी और प्रसन्नमुख होकर उसने उस बालकको वहीं सुखसे लिटा दिया तथा अपने घर चला आया। श्रीदत्तका छोटा बहनोई इन्द्रदत्त श्रेष्ठी व्यापारके लिए उधर गया था। वहाँ उसने शिशु के पास खेलनेके लिए आये हुए ग्वाल-बालकोंके मुखसे उस बालकका समाचार सुना और वह उस स्थानपर गया । वहाँ उसने अनेक बछड़ोंसे घिरे हुए उस शिशुको देखा जो ऐसा प्रतीत होता था, मानो अनेक चन्द्रकान्त मणियोंके बीचमें स्थित लालमणिका खजाना है। उसके कोई पुत्र नहीं था। अतः उसने उसे अपना पुत्र मानकर उठा लिया और पुत्रके लिए अत्यन्त लालायित अपनी पत्नी राधासे बोला-'राधे! तुम्हारे गूढ गर्भसे इस शिशुने जन्म लिया है।' उसने सर्वत्र यह बात फैला दी और पुत्रोत्पत्ति की खुशीमें बड़ा भारी उत्सव किया । श्रीदत्तने कानों-कान यह समाचार सुना और बच्चेको मार डालनेके विचारसे यमराजकी १. अग्निवत् । २. आश्रयमश्नातीति । ३. तस्मात् कारणात् । ४. गूढवधः । ५. वृद्धा स्त्री । ६. मृत एव जनितः । ७. कुटिलवाणी। ८. बालम् । ६. राहु । १०. चन्द्रम् । ११. एकान्तम् । १२. स्वगृहं गतः । १३. श्रीदत्तस्य । १४. लघुभगिनी। १५. वणिग्व्यवहार। १६. गोकुल। १७. वत्सेभ्यो हितप्रदेशः । १८. समीप । १९. मुख । २०. लघुवत्स । २१. बालम् ।
SR No.022417
Book TitleUpasakadhyayan
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2013
Total Pages664
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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