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________________ -२२१] उपासकाध्ययन तस्मै वलिसचिवाय सर्वाधिकारिकं स्थानमदात् । . बलिः-'देव, गृहीतोऽयमनन्यसामान्यसंभावनाह्लादः प्रसादः किंतु कर्णेजपवृत्तीनां लञ्चलुचनोचितचेतःप्रवृत्तीनां च प्रायेण पुरुषाणां नियोगिपदं हृदयास्पदं न शोर्योर्जितचित्तस्योदारवृत्तस्य च तदसाध्यसाधनेन नन्वयं जनो निदेशदानेनागृहोतव्यः' । पद्मः-'सत्यमिदम्' कि तु स्वामिसमीहितसमर्थनसंवीणेषु भवद्विधेषु सचिवेषु सत्सु किं नामासाध्यं समस्ति। अन्यदा तु कुम्भपराधिकृतमूर्तिः सिंहकीर्ति म नृपतिरनेकायोधनलब्धयशःप्रसाधनः संनद्धसारसाधनो हस्तिनागपुरावस्कन्दप्रदानायागच्छन्, एतनगरच्छन्नावसर्पनिवेदितागमनः पद्मनिदेशादभ्यमित्रीणप्रयाणपरायणेन कूटप्रकामकदनकोविदधिषणेन बलिनामध्ये प्रबंन्धेन युद्धयमानः, नामनिर्गमविधानः प्रधानैयुद्धसिद्धान्तोपान्तैः सामन्तैश्च सार्धं प्रवध्य तस्मै हृदयशल्योन्मूलनप्रमदमतये क्षितिपतये प्राभृतीकृतः । क्षितिपतिः-शस्त्रशास्त्रविद्याधिकरणव्याकरणपतञ्जले बले, निखिलेऽपिं बले चिरकालमनेकशः कृतकृष्ण वदनच्छायस्यास्य द्विष्टस्य विजयानितान्तं तुष्टोऽस्मि । तद्याच्यतां मनोभिलाषधरो वरः' । बलिः-'अलक' यदाहं याचे तदार्य प्रसादोकर्तव्यः' इत्युदारमुदार्य पुनश्चतुरङ्गबलःप्रबलः प्रतिकूलभूपालविनयनाय पन्नमवनोपतिमादेशं याचित्वा सत्त्वरमशेषाशावशनिवेशानीकसत्रितसकलमहीतलो दिग्विजययालिया और सब अधिकार उसे दे दिया। बलि बोला--देव ! आपने हमपर असाधारण अनुग्रह किया है। किन्तु चुगलखोरों और घूसखोरोंको यह बात सह्य नहीं हो सकती। अतः आप कोई ऐसा कार्य करनेकी हमें आज्ञा दें जो असाध्य हो। पद्म-तुम्हारा कहना ठीक है किन्तु स्वामीके अभीष्टको पूरा करने में कुशल तुम्हारे जैसे मंत्रियोंके होते हुए कुछ भी असाध्य नहीं है। एक बार कुम्भपुरका स्वामी सिंहकीर्ति राजा, जिसने अनेक युद्धोंमें नाम कमाया था, बड़े भारी लश्करके साथ हस्तिनागपुरपर आक्रमण करनेके लिए चला । गुप्तचरोंने उसके आनेका समाचार बलिसे निवेदित किया । बलि शत्रुपर आक्रमण करनेमें तथा कपट-युद्धमें बड़ा चतुर था । उसने पद्मकी आज्ञा लेकर शत्रुका सामना करनेके लिए कूच कर दिया और मार्गमें ही उसपर आक्रमण कर दिया। तथा विख्यात नामवाले प्रधानों और युद्ध करनेमें कुशल उसके सब सामन्तोंके साथ उसे बाँधकर राजा पद्मके सामने उपस्थित कर दिया। हृदयके इस काँटेके निकल जानेसे राजा पद्म बड़ा प्रसन्न हुआ और बोला-- - राजा-'व्याकरणमें पतञ्जलिके समान शस्त्र विद्यामें निपुण बलि ! समस्त सैन्यके होते हुए भी चिरकालसे अनेक बार मेरे मुखको काला करनेवाले इस शत्रुको जीतनेसे मैं बहुत प्रसन्न हूँ । जो तुम्हें माँगना हो माँगो।' 'जब मैं याचना करूँ तब महाराज मुझपर कृपा करें। ऐसा कहकर और राजा पद्म से आज्ञा लेकर विरोधी राजाओंको वश करनेके उद्देश्यसे बलि बड़ी भारी सेनाके साथ दिग्विजयके १. प्रवीणेषु। २. संग्राम । ३. प्रच्छन्नचराः । ४. शत्रु सन्मुख । ५. संग्राम । ६. नाब्ज-ब०। -नाब्धि-मु०। ७. मार्गरोधेन । ८. स्वकीयअंकणविरुदावलीसहितः । ९. समस्तसन्ये विद्यमानेऽपि । १०. अनेकबारं मम कृतमानभंगस्य ईदग्विधस्य शत्रोविजयात् । ११. स्वामिन् ।
SR No.022417
Book TitleUpasakadhyayan
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2013
Total Pages664
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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