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________________ १०० सोमदेव विरचित [कल्प २०, श्लो० २२१त्रार्थमुच्चचाल। अत्रान्तरे विहारवशाद्भगवानकम्पनाचार्यस्तेन महता मुनिनिकायेन साकं हास्तिनपुरमनुसृत्योत्तरदिग्विलासिन्यवतंसकुसुमतरौ हेमगिरौ महावगाहायां गुहायां चातुर्मासीनिमित्तं स्थिति बबन्ध । बलिरपि निखिलजलधिरोधः सविधवनविनोदितवीरवधूहृदयो दिग्विजयं विधायागतस्तं भगवन्तमवबुध्य चिरकालव्यवधानेऽप्यलेकविषनिषेक इव जातप्रकोपोद्रेकस्तदपराधविधानाय धराधीश्वरं पुरावितीर्णवरव्याजेन समाशाखार्द्धमात्मैकशासनप्राज्यं राज्यमन्तःपुरप्रचारैश्वर्यमात्रसमतः पनतोऽभ्यर्थ्य मखमिषेण मुनिसैन्यौजन्योत्कर्ष चिकीर्षुमदनंद्रव्याधिकरणैरुपकरणैरग्निहोत्रमारेभे । अत्रावसरे निजनिवासपवित्रितमिथिलापुरे जिष्णुसूरेरन्तेवासी भ्राजिष्णुर्नाम तमीमध्यसमये बहिर्विहितं विहारः समीरमार्गे नक्षत्रवीथीं लोचनालोकनसनाथां विदधानश्चमरुसंचारचकितगात्रं कुरङ्गकलत्रमिव, तरलतारकाश्रयणं श्रवणमवेक्ष्यान्तरिक्षे लक्ष्यं यध्वा किलैवमुच्चैरवोचत्-'अहो, न जाने क्वचिन्महामुनीनां महानुपसर्गो वर्तते' इति । एतच्च श्रमणशेरैणगणी समाकर्ण्य प्रयुक्तावधिबोधस्तनगरगिरिगुहायामकम्पनाचार्यस्य बलिदुर्विलसितमवधार्याकार्य च गगनगमनप्रभावं पुष्पकदेवं देशव्रतसेवम् 'हंहो पुष्पकदेव, तव विक्रयद्धेवैधुर्यान्न तदुपसर्गविसर्गे सामर्थ्यमस्ति । ततस्तथाविधर्द्धिवृद्धिरोचिष्णवे विष्णवे तामलिए निकला। ___इसी बीचमें भगवान् अकम्पनाचार्य बड़े भारी मुनिसंघके साथ विहार करते हुए हस्तिनागपुरमें पधारे और उत्तर दिशामें स्थित हेम पर्वतकी विशाल गुफामें चातुर्मास करनेके लिए ठहर गये। बलि भी समस्त समुद्रोंके तट तक दिग्विजय करके लौट आया। जैसे बहुत समय बीत जानेपर भी पागल कुत्तेके काटेका जहर चढ़ जाता है वैसे ही मुनिसंघके आनेका समाचार जानकर उसे क्रोध चढ़ आया । पुराना बदला चुकानेके लिए उसने राजा पद्मसे पहले दिये हुए वरका स्मरण दिलाकर पन्द्रह दिनके लिए राज्य माँग लिया । राज्य देकर राजा पद्म अन्तःपुरमें रहने लगा। और बलिने यज्ञके बहानेसे मुनियोंको त्रास देनेके लिए मद्य, मांस आदिके द्वारा अग्निहोत्र करना प्रारम्भ किया। इधर यह काण्ड चालू था उधर मिथिलापुरीमें जिष्णुसूरिका शिष्य भ्राजिष्णु गत्रिके मध्यमें बाहर बैठा था और आकाशमें नक्षत्र-मण्डलकी ओर देख रहा था। जैसे व्याघ्रके संचारसे हिरणी भयभीत हो जाती है वैसे ही श्रवण नक्षत्रको काँपता हुआ देखकर आकाशमें दृष्टि जमाये हुए वह जोरसे चिल्लाया-'आह, न जाने कहाँ महामुनियोंपर उपसर्ग आया है।' यह सुनकर आचार्यने अपने अवधिज्ञानसे जाना कि हस्तिनागपुरके निकटवर्ती पर्वतकी गुफामें अकम्पनाचार्यके संघके ऊपर बलि घोर उपसर्ग कर रहा है। उन्होंने तुरन्त ही आकाशमें गमन कर सकनेवाले पुष्पकदेव नामक क्षुल्लकको बुलाया और बोले 'पुष्पकदेव ! तुम्हारे पास विक्रिया ऋद्धि नहीं है इस लिए तुम उस उपसर्गको दूर नहीं १. तटसमीप। २. उष्णकाले शुना दष्टः, वर्षाकाले उदयमागच्छति तद्विषम् । ३. तेषां मुनीनां विराधना निमित्तम् । ४. पक्षकम् । ५. उपसर्गम् । ६. मद्यमांस । ७. रात्रिः। ८. -तहारः ज० अ०। ९. गगने। १०. चमूर-अ० ज० । व्याघ्र । ११. श्रमणानां शरणीभूतश्चासौ गणी सूरिः।
SR No.022417
Book TitleUpasakadhyayan
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2013
Total Pages664
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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