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________________ सोमदेव विरचित [कल्प १६, श्लो० -२२० साने प्रहरणमस्ति' इति वचनपुरःसरं कथान्तरमनुबध्य साधु समाराध्य च प्रशान्ति हैमवतीप्रभवगिरिमकस्पनसूरि विनेयजनसंभावनौचित्यशया तदनुहयात्मसदनमासाद्यापरेदयुरपरदोषमिषेण सनिकारकरणमनुजैः सह कर्मस्कन्धबन्धवार्द्ध लिं बलि निजदेशानिर्वासयामास । भवतश्चात्र श्लोको सन्नसंश्च समावेव यदि चित्तं मलीमसम् । यात्यान्तः क्षयं पूर्वः परंश्चाशुभचेष्टितात् ॥२२०॥ स्वमेव हन्तुमीहेत दुर्जनः सजनं द्विषन् । योऽधितिष्ठेत्तुलामेकः किमसौ न व्रजेदधः ॥२२॥ ___ इत्युपासकाध्ययने बलिनिर्वासनो नामैकोनविंशः कल्पः । बलिद्विजः सानुजस्तथा सकलजनसमक्षमसूक्ष्मसूक्ष्मणपूर्वकं निर्वासितः सन्मुनिविषयरोषोन्मेषकलुषितः कुरुजाङ्गलमण्डलेषु तहिलासिनीजलकेलिविगलितकालेयपाटलकल्लोलाधरसुरसरित्सीमन्तिनीचुम्बितपर्यन्तप्रसरे हस्तिनागपुरे साम्राज्यलक्ष्मीमिव लक्ष्मीमती महादेवीमवहाय सरस्वतीरसावगाहसागरस्य श्रुतसागरस्य भगवतोऽभ्यणे पित विनयविष्णुना "विष्णुना लघुजन्मना सूनुना सार्धं प्रवर्धितदीक्षाप स्य महापनस्य महीपतेर्महान्तं पमनामनिलयं तनयमशिश्रियत् । पनोऽपि चारसंचाराद्विदितवंशविद्याप्रभावाय तत्त्वोंसे ही सम्बन्ध रखता है उस मनुष्यके पास मेरुके समान स्थिर आप सरीखे गुरुओंका अपवाद करनेके सिवा दूसरा हथियार नहीं है।' इस प्रकार चर्चाका प्रसङ्ग बदलकर, और परम शान्तिरूपी गंगा नदीके उद्गमके लिये हिमवान् पर्वतके तुल्य अकम्पनाचार्यकी शिष्यजनोंके योग्य आराधना करके तथा आज्ञा लेकर राजा अपने महलों में लौट आया । और दूसरे दिन अन्य अपराधके बहानेसे बलिको उसके साथी मंत्रियोंके साथ तिरस्कारपूर्वक देशसे निर्वासित कर दिया । इस विषयमें दो श्लोक हैं जिसका भाव इस प्रकार है-'यदि चित्त मलीन है तो सज्जन और दुर्जन दोनों समान हैं। उनमें से सज्जन तो अशान्तिके कारण नष्ट हो जाता है और दुर्जन बुरे कार्योंके करनेसे नष्ट हो जाता है। क्योंकि सज्जनसे द्वेष करनेवाला दुर्जन स्वयं अपने ही घातकी चेष्टा करता है। ठीक ही है जो अकेला ही तराजूमें बैठ जाता है वह नीचे क्यों नहीं जायेगा' ॥२२०-२२१॥ इस प्रकार उपासकाध्ययनमें बलिके देशनिर्वासनका वर्णन करनेवाला उन्नीसवाँ कल्प समाप्त हुआ। समस्त लोगों के सामने महान् तिरस्कारपूर्वक अपने साथियोंके साथ निर्वासित किये जानेपर बलि मुनियोंसे अत्यन्त रुष्ट हो गया और कुरुजांगल देशके हस्तिनागपुर नामके नगरके राजा पद्मकी शरणमें पहुँचा। राजा पद्मके पिता महापदमने अपने बड़े पुत्र विष्णुके साथ श्रुतसागर मुनिके समीपमें जिनदीक्षा धारण कर ली थी और छोटे पुत्र पद्मको राज्यभार सौंप दिया था। पद्मने गुप्तचरोंके द्वारा बलिको कुलीन और विद्वान् जानकर उसे अपना मंत्री बना १. गंगानदी। २. गजागमाचार्यम् । ३. सज्जनदुर्जनौ। ४. क्रोधात् सत्पुरुषः क्षयं याति । ५. दुर्जनः । ६. बृहत् । ७. पराभव । सूक्षण-आ०। ८. कुंकुम । ९. गंगा एव सीमन्तिनी। १०. परित्यज्य । ११. विस्तारकेण । १२. सम्पदः ।-दीक्षापद्मस्य मही-म० ज० मु०।
SR No.022417
Book TitleUpasakadhyayan
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2013
Total Pages664
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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