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________________ -१८०] उपासकाध्ययन ६५ वेशमुनिः 'साध्वयमभिदधाति' इति विचिन्त्य विहत्य च निःशङ्कनिष्पादितनीहारो विरहितव्याहारः' करेण 'किमप्यभिनयन्नेवमनेनोक्तः-'भगवन् , किमिदं मौनेनामिनीयते। जिनरूपाजीव : अभिमानस्य रक्षार्थ प्रतीक्षार्थ श्रुतस्य च ध्वनन्ति मुनयो मौनमदनादिषु कर्मसु ॥१८०॥ इति मौनफलमविकल्प्य जातजल्पः 'द्विजात्मज, समन्विष्य समानीयतामावायत्कायो गोमयो भसितपटलमिष्टकाशकलं वा'। 'भगवन्, अखिललोकशौचोचितप्रवृत्तिकायां मृत्तिकायां को दोषः'। 'बटो, प्रवचनलोचननिचा यिकास्तत्कायिकाः किल तत्र सन्ति जीवाः'। 'भगवन् , शानदर्शनोपयोगलक्षणो जीवगणः। न च तेषु तवयमुपलभ्यते'। _ 'यद्येवमानीयतां मृत्स्ना कृत्स्नाऽसुमत्सेव्या' । बटुस्तथाचर्य कुण्डिकामर्पयति । मुधामुनिर्जलविकलां कमण्डलु करेणाकलय्य 'वटो, रिक्तोऽयं कमण्डलुः । 'भगवन् , इदमुदकमचिरवल्ले तल्ले समास्ते'। 'बटो, पटापूतपानीयादाने महदादीनवं किमिति यतो जन्तवः सन्ति। तदसत्यमिह स्वच्छतया विहायसीव पयसि तदनवलोकनादिति वचनात्तत्र बहिस्त भगवन् ! इनके श्वासादिकमेंसे कितने प्राण होते हैं ? घासके ये अंकुर तो रनोंके समान पार्थिव हैं।' 'यह बालक ठीक कहता है' यह सोचकर उस मुनिवेषीने निःशक हो कर उस तृणोंसे व्याप्त पृथ्वीपर विहार किया और शौचसे निवृत्त होनेपर मौनपूर्वक हाथसे संकेत किया। तब बालक बोला-'भगवन् , मौनसे आप संकेत क्यों करते हैं ?' यह सुनकर वह मुनिवेषी 'अभिमानकी रक्षाके लिए तथा शास्त्रकी विनयके लिए भोजन आदि करते समय मुनिगण मौन धारण करनेको कहते हैं' मौनके इस फलका विचार किये बिना बोला-'ब्राह्मणपुत्र ! कहींसे भी खोजकर सूखा गोवर राख या इंटका टुकड़ा लाओ।' 'भगवन् ! सब लोग मिट्टीसे शुद्धि करते हैं, मिट्टीमें क्या दोष है ?' 'बालक ! शास्त्र में कहा है कि मिट्टीमें पृथिवीकायिक जीव रहते हैं।' 'भगवान् ! जीवका लक्षण तो ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग है, किन्तु मिट्टीमें ये दोनों नहीं पाये जाते।' 'तो सब जीवधारियोंसे सेवनीय मिट्टी लाओ।' बालकने मिट्टी ला दी और कमण्डलु रख दिया। हाथसे कमण्डलुको खाली जानकर मुनिवेषी बोला- 'बालक ! यह कमण्डलु, खाली है' 'भगवन् ! सामने तालमें तो पानी है।' 'बालक ! बिना छने पानीको काममें लानेमें बड़ा पाप है; क्योंकि उसमें जीव रहते हैं ?' 'यह बिल्कुल झूठ है क्योंकि आकाशकी तरह स्वच्छ इस पानीमें जीव नहीं दिखाई देते।' यह सुनकर उस द्रव्य लिङ्गीने तालपर जाकर शौच क्रिया की। यह सब देखकर वह विद्याधर सोचने लगा कि इसी लिए अतीन्द्रिय पदार्थोंको १. मौनी । २. संज्ञां कुर्वन् । ३. दृष्टाः । ४. पृथ्वीकायिकाः । ५. ज्ञानदर्शनोपयोगद्वयं । ६. कर्मास्रवदोषं ।
SR No.022417
Book TitleUpasakadhyayan
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2013
Total Pages664
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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