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________________ सोमदेव विरचित [कल्प ८, श्लो० १६४प्रतिनिवृत्तकुपितसुकेशीदर्शनाशङ्किताशयेन तत्कायसंक्रमितावलोकिनीपर्णलघुविद्याद्वयन शङ्खपुराभ्यर्णभागिनि भीमवननामनि कानने मुक्ता। ____ तत्र च मृगयाप्रेशंसनमागतेन भीमनाम्ना किरातराजलक्ष्मीसीम्नावलोकिता, नीता चोपान्तप्रकोणदिफलच्छल्लि पल्लिम् । एतद्रुपदर्शनदीप्तमदेनमदेन च तेन स्वतः परतश्च तैस्तैरुपायैरात्मसंभोगसहायैः प्रार्थिताप्यसंजातकामिता हठात्कृतकठोरकामोपक्रमेण तत्परिगृहीतव्रतस्थैर्याश्चर्यितकान्तारदेवताप्रातिहार्यात्पर्याप्तपक्कणप्लोषेण मृत्युहेतुकातङ्कपावकपच्यमानशरीरेण च 'मातः, क्षमस्वैकमिममपराधम्' इत्यभिधाय वनेचरोपचारोपचीयमानसहचरीचित्तोत्कण्ठे शङ्खपुरपर्यन्तपर्वतोपकण्ठे परिहृता तत्समीपसमावासितसार्थानीकेन पुष्पकनामकेन वणिक्पतिपाकेनावलोकिता सती स्वीकृता च तेन तेन चार्थेन स्वस्य वशमानेतुमसमर्थन कोशलदेशमध्यायामयोध्यायां पुरि व्यालिकाभिधानकामपल्लवकन्दल्याः शंफल्लयाः समर्पिता। तयापि मदनमदसंपादनावसथाभिः कथाभिः क्षोभयितुमशक्या तद्राजधानीविनिवेशस्य सिंहमहीशस्योपार्यनीकृता। तेनाप्यलब्धतन्मनःप्रवेशेन विलक्षितातिप्तदुरभिसंधिना तत्कन्यापुण्यप्रभावप्रेरितपुरओर चल दिया। आधे मार्गमें लौटती हुई अपनी कुपित पत्नीको देखकर उसके भयसे उसने उसे पर्णलघु नामकी दो विद्याओंको सौंप दिया और उन्होंने अनन्तमतीको शंखपुरके निकटवर्ती भीमवन नामके जंगलमें छोड़ दिया । वहाँ शिकार खेलनेके लिए आये भिल्लराज भीमने उसे देखा और वह उसे अपनी कुटियापर ले आया, जहाँ आस-पासमें इंगुदी वृक्षके फलोंकी लताएँ फैली हुई थीं। भिल्लराज इसके रूपको देखकर कामान्ध हो गया। उसने स्वयं तथा दूसरेके द्वारा अनन्तमतीसे भोगकी बारम्बार प्रार्थना की, किन्तु वह तैयार नहीं हुई। तब उसने बलात्कार करनेका प्रयत्न किया । किन्तु उसके व्रतके माहात्म्यसे वन देवताने उसकी रक्षा की और शबरालयमें आग लगा दी। जब भिल्लराजका शरीर जलने लगा और उसने मृत्यु निकट देखी तो बोला-'माता ! मेरे इस एक अपराधको क्षमा करो।' __इस प्रकार क्षमा माँगकर उसने अनन्तमतीको शंखपुरके निकटवर्ती पर्वतके समीपमें छुड़वा दिया । वहाँ पासमें व्यापारियोंका एक समूह आकर ठहरा हुआ था। वणिक् पतिके पुत्र पुष्पकने अनन्तमतीको देखा और जिस-तिस उपायोंसे उसे वशमें लानेका प्रयत्न किया। जब वह अपने प्रयत्नमें सफल नहीं हो सका तो उसने उसे कौशल देशके मध्यमें बसी हुई अयोध्या नगरीमें व्यालिका नामकी वेश्याको सौंप दिया । वेश्याने कामोन्मत्त करनेवाली कथाएँ सुना-सुनाकर उसे क्षुब्ध करना चाहा किन्तु वह भी अपने प्रयत्नमें असफल रही। तब उसने उसे अयोध्याके राजा सिंह महीपतिको भेंट कर दिया। राजा सिंह भी जब उसके हृदयमें स्थान नहीं पा सका तो उसने उसके साथ बलात्कार करना चाहा । तब उस कन्याके पुण्यके प्रतापसे नगर देवताने आकर उसकी रक्षा की। १. क्रीडां प्रति । २. -मदमदनेन अ० ज० मु०। ३. परिपूर्णगृहदाहेन । ४. कुट्टिन्याः । ५. तद्राजधान्यां विनिवेशः स्थानं यस्य सः तस्य । ६. प्राभतीकृता। ७. गहीतदुष्टाभिप्रायेगा :
SR No.022417
Book TitleUpasakadhyayan
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2013
Total Pages664
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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