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________________ -१६४ ] उपासकाध्ययन कन्दाभिनवात्रवृत्तिचतुरे नेत्राश्रिते विभ्रमे प्रादायेव च मध्यगौरवगुणं वृद्ध नितम्बे सति ॥१६३॥ समायाते मुहुरुत्पथप्रथमानमन्मथोन्मार्थमन्थरसमस्तसत्त्वस्वान्ते सद्यः प्रसूतसहकाराङ्कुरकवलकषायकण्ठकोकिलकामिनीकुहारावासरालितमनोजविजय मलयाचलमेखलानिलीनकिन्नरमिथुनमोहनामोदमेदुरपरिसरन्समीरसमुदये विकसत्कोशकुर वकप्रसवपरिमलपानलुब्धमधुकरीनिकरझङ्कारसारप्रसरे वसन्तसमयावसरे सा प्रसरत्स्मरविकारा स्मरस्खलन्मतिगतिरनगमतिः सह सहचरीसमूहेन मदनोत्सवदिवसे दोलान्दोलनलालसमानसा स्वकीयरूपातिशयसंपत्ति[ति]रस्कृतसकलभवनाङ्गनाङ्गविलासासुकेशीप्रियतमानुगतेन कृतकामचारप्रचारचेतसा पूर्वापराकूपारपालिन्द्री सुन्दरीसनाथोत्सङ्गधरस्य विजयार्धावनीधरस्य विद्याधरीविनोदपादपोत्पादक्षोण्यां दक्षिणश्रेण्यां किन्नरगीतनामनगरनरेन्द्रेण कुण्डलमण्डितनाम्नाम्बरचरेण निचायितां । शृङ्गारसारममृतधु तिमिन्दुकान्ति मिन्दीवरद्युतिमनङ्गशरांश्च सर्वान् । आदाय नूनमियमात्मभुवा प्रयत्ना त्सृष्टा जगत्त्रयवशीकरणाय बाला ॥१६४॥ इति विचिन्त्याभिलषिता च। ततस्तामपजिहीर्षुधिषणेन"मुहुनिवृत्य निर्वर्तितनिजनिलयसुकेशीनिवेशेन प्रत्यागत्यापहृत्य च पुनर्नभश्चरपुरं प्रत्यनुसरता गगर्ने मार्गाढे बोलती थी तो उसके ओष्ठ कुछ बनावटी कम्पनको लिये हुए होते थे। और आँखोंमें, कामदेवके नवीन अस्त्रोंके संचालनमें चतुर कटाक्षने अपना डेरा डाल दिया था। और मध्यभागकी गुरुताको मानो लेकर नितम्ब भाग विकसित हो गया था ॥१६३॥ यौवनके साथ ही वसन्त ऋतु भी आ टपकी । समस्त प्राणियोंके मनको कामदेवने सताना प्रारम्भ कर दिया। आमके वृक्षोंपर मौर आ गये और उसे खाकर कोयलने 'कुह' 'कुह' करके कामदेवकी विजय यात्राको सूचना कर दी। मलय वायु बहने लगी। कमलोंपर भौरें गुंजार करने लगे। एक बार मदनोत्सवके दिन रूपवती युवती अनन्तमती अपनी सखियोंके साथ झूला झूलनेके लिए उद्यानमें गई। विजयाध पर्वतकी दक्षिण श्रेणिमें स्थित किन्नरगीत नामक नगरका स्वामी कुण्डलमण्डित विद्याधर अपनी पत्नी सुकेशीके साथ आकाशमें विहार करता था। उसने उसे देखा। और उसके लावण्यसे मोहित होकर सोचने लगा-'शृङ्गारसे सार, अमृतसे तरलता, चन्द्रमासे कान्ति, कमलसे शोभा और कामदेवसे बाणोंको लेकर ही स्वयंभू ब्रह्माने तीनों लोकोंको वशमें करनेके लिए इस बालाकी रचना बड़े श्रमसे की है ॥१६॥ यह सोच उसको हरनेकी इच्छासे अपने घरकी ओर लौटा । वहाँ अपनी पत्नी सुकेशीको छोड़कर फिर उसी उद्यानमें आया और अनन्तमतीको हरकर आकाशमार्गसे अपने नगरकी १. गौरवगुणं नितम्बन गृहीतं तेन मध्यं क्षामं जातम् । २. पीडन । ३. उत्पन्न । ४. सुरत । ५. मोगरसदृशरक्तसुगंधपुष्पविशेष। ६. सारस्खल -आ० । ७. बेला एव स्त्रीसहित तटी। ८. दृष्टा । ९. -तद्रुति-अ० ज०।१०. ब्रह्मणा । ११. अपहर्तुमिच्छुमतिना। १२. -मार्गार्द्धनिवृत्ति-आ० ।
SR No.022417
Book TitleUpasakadhyayan
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2013
Total Pages664
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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