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________________ [ ११७] गाथा- अप्पा चरित्तवंतो दंसणणाणेण संजुदो अप्पा। सो झायव्वो णिच्चं णाऊणं गुरूपसाएण ॥६४ ॥ छाया- आत्मा चारित्रवान् दर्शनज्ञानेन संयुतः आत्मा । सः ध्यातव्यः नित्यं ज्ञात्वा गुरूप्रसादेन ॥६४ ॥ अर्थ- आत्मा चारित्रवान है तथा ज्ञान और दर्शन सहित है । ऐसे आत्मा को गुरू की कृपा से जान कर हमेशा उसका ध्यान करना चाहिये ॥ ६४॥ गाथा-दुक्खे णज्जइ अप्पा अप्पा णाऊण भावणा दुक्खं । भावियसहावपुरिसो विसयेसु विरज्जए दुक्खं ॥६५॥ छाया-दुःखेन ज्ञायते आत्मा आत्मानं ज्ञात्वा भावना दुःखम् । भावितस्वभावपुरुषः विषयेषु विरज्यति दुःखम् ॥६५॥ अर्थ- आत्मा बड़ी कठिनता से जाना जाता है और आत्मा को जान कर रात दिन उसके गुणों का चिन्तवन करना और भी कठिन है । तथा आत्मा की भावना करने वाला पुरुष भी बड़ी कठिनता से विषयों से विरक्त (उदास ) होता है ॥६५॥ गाथा- ताम ण णजइ अप्पा विसएसु णरो पवढए जाम । विसए विरत्तचित्तो जोई जाणेइ अप्पाणं ॥६६॥ .. छाया- तावन्न ज्ञायते आत्मा विषयेषु नरः प्रवर्तते यावत् । विषये विरक्तचित्तः योगी जानाति आत्मानम् ।। ६६ ॥. . अर्थ- जब तक मनुष्य इन्द्रियों के विषयों में लगा रहता है तब तक आत्मा को नहीं जानता है । इस लिए विषयों से विरक्त हुआ योगी ही आत्मा को जानता है ।। ६६ ॥ गाथा- अप्पा पाऊण णरा केई सम्भावभावपरिभट्टा। हिंडंति चाउरंगं विसयेसु विमोहिया मूढा ।। ६७ ॥ . . . छाया-आत्मानं ज्ञात्त्वा नराः केचित् सद्भावभावपरिभ्रष्टाः । हिण्डन्ते चातुरंग विषयेषु विमोहिताः मूढाः ॥ ६७ ॥
SR No.022411
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasdas Jain
PublisherBharatvarshiya Anathrakshak Jain Society
Publication Year1943
Total Pages178
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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