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________________ सृष्टिकर्ता ईश्वर के स्वीकार करनेवाले सजन यह नहीं परामर्श करते कि ईश्वर को संसार की रचना करते समय ऐसी क्यों दुर्बुद्धि उत्पन्न हुई कि संसार की रचना के करने के साथ ही अनेक मत मतान्तर भी रच दिए, क्या उसने यह नहीं जाना था कि अनेक मत मतान्तर रचने से मुझे कोई अच्छा कहेगा और कोई बुरा। अनेक मनुष्य शिव-विष्णु की पूजा अर्चा करते हैं और अनेक यवनादि मनुष्य उन्हीं शिव-विष्णु की निन्दा करते हैं। संसार में अनेक शाक्त और अनेक शेव तथा अनेक लौकिक मत धारी हैं, कोई गाणपत और कोई वैदिक हैं इस प्रकार अनेक मत मतान्तर रचकर संसार में निरर्थक परस्पर कलह, कदाग्रह बढ़ाकर ईश्वर ने क्या लाभ उठाया ? क्या सृष्टि रचयिता इस बात से अज्ञ था ? कि अनेक मत मतान्तर रचने से कोई मेरे को धिक्कार देंगे और कोई अच्छा भी कहेंगे। अतः सिद्ध हुआ कि जगव ईश्वर का रचा हुआ नहीं है किन्तु अनादि है। ____सृष्टिकर्ता ईश्वर स्वीकार करनेवाले यह भी कहते हैं कि बुद्धि ईश्वरदत्त है इस पर हम पूछते हैं कि एक गौ की पूजा करता और दूसरा अर्थात् यवनाादक गाय का वध करता है यह दोनों को बुद्धि ईश्वर ने दी या दूसरे ने? बतलाइए जब बुद्धि का प्रेरक ईश्वर है तो एक को सुबुदि देना और दूसरे को नष्टबुद्धि देना क्या ईश्वर के लिए न्याय है ? इसलिये उपर्युक्त आपका कहना भी अयुक्त है। __ जो लोग यह स्वीकार करते हैं कि सृष्टि का अधिपति ईश्वर ही है और जगत् उसका ऐश्वर्य है इसीसे ईश्वर को ऐश्वर्य प्राप्त हुआ है, जो ऐश्वर्यवान हो वही ईश्वर कहा जा सक्ता है, इसके प्रत्युत्तर में विदित होकि जगत् का आधिपत्य लेने से ईश्वर को क्या प्रयोजन था ? जगतरूप ऐश्वर्य ईश्वर को किस लिए चाहिए था? क्या जगदुत्पत्तिरूप ऐश्वर्य को जगन्नियन्ता ईश्वर ने भूतपूर्व कभी प्राप्त नहीं किया था ? जगदुत्पत्ति के प्रथम ईश्वर के समीप ऐश्वर्य नहीं था ?
SR No.022403
Book TitleJagatkartutva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Maharaj
PublisherMoolchand Vadilal Akola
Publication Year1909
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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