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________________ ( १९ ) प्राप्त होने के प्रथम अनीश्वर था ? क्या सृष्टि रचने से ही ऐश्वर्य प्राप्त हुआ है ? जो ईश्वर को ऐश्वर्य प्राप्त हुआ है वह किसी का दिया हुआ है या स्वतः उत्पन्न हो गया ? यदि ऐश्वर्य किसी का भी दिया हुआ मान लिया जाय तो देनेवाला कौन ? यदि स्वतः उत्पन्न होना मानोंगे तो किस रीत्यनुसार और किस स्थान पर प्राप्त हुआ ? यदि जगन्नियन्ता स्वीकार करनेवाले ऐसा कहें कि द्रव्य से मनुष्य धनाढ्य कहलाता है और प्रजा से राजा कहलाता है तद्वत् जगतरूप ऐश्वर्य से ईश्वर कहलाता है इसके उत्तर में आप स्वतः विचार करें कि जब जगत् के ऐश्वर्य से ईश्वर कहलाता है तो सृष्टि के प्रलय हो जाने पर ऐश्वर्य नष्ट भी होजाना चाहिए ? जैसे धनाढ्य का धन चले जाने से धनाढ्यता नष्ट हो जाती है अर्थात् फिर वह धनाव्य के स्थान पर दीन दरिद्री कहलाता है तद्वत् ईश्वर को भी अनीश्वर स्वीकार करना होगा ? और साथ ही साथ यह भी कहना होगा कि कभी ईश्वर है और कभी अनीश्वर है, अतः सिद्ध हुआ कि जगन्नियन्ता ईश्वर जगत् का अधिपति नहीं है। कितने लोगों का कहना है कि सृष्टि की उत्पत्ति के प्रथम ईश्वर ने ऐसा सङ्कल्प किया कि मैं अपनी सामर्थ्य प्रकट करूँ ___ "एकोऽहं बहु स्याम" भावार्थ-मैं एक से अनेक बनूं । ईश्वर को सृष्टि रचना करने का यही प्रयोजन था इसलिये सृष्टि निर्माण की, यदि ऐसा है तो स्मरण रहै जहाँ संकल्प है तहाँ विकल्प भी है, अतः आपका ईश्वर संकल्प विकल्प सहित ठहरा ? संकल्प विकल्पमय सिद्ध होने से उसको सर्वथा ईश्वर नहीं कह सक्ते । जो ईश्वर ने अपनी सामर्थ्य प्रकट की वह किसको बतलाने को की ? और “मैं अपनी सामर्थ्य प्रकट करूं, ऐसी इच्छा जीवबुद्धि को होना उचित है अतः आपका ईश्वर जीवबुद्धि ठहरा, और जीवबुद्धि होने से उसको सर्वज्ञ कहना अयुक्त है, क्योंकि ईश्वर होकर सामर्थ्य प्रकट करना न करना इत्यादि कार्य तो देहधारी
SR No.022403
Book TitleJagatkartutva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Maharaj
PublisherMoolchand Vadilal Akola
Publication Year1909
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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