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________________ *अथ समयसारस्य विषयानुक्रमणिका * " विषय पृ० सं० विषय पृ० सं० मंगलाचरण ग्रंथप्रतिज्ञा ... ... ... ४ | ज्ञायकभावमात्र आत्माके दर्शन ज्ञान चारिजीवाजीवाधिकार ।। त्रके भेदकर भी अशुद्धपन नहीं है शायक है वह ज्ञायक ही है ... ... ... रंगभूमिस्थल बांधा है, उसमें जीवनामा आत्माको व्यवहारनय अशुद्ध कहता है उपदार्थका खरूप कहा है, यह जीवाजीव सके कहनेका प्रयोजन ... ... ... १९ रूप छह द्रव्यात्मक लोक है इसमें धर्म शुद्धनय सत्यार्थ, व्यवहारनय असत्यार्थ कहा अधर्म आकाश काल ये चार द्रव्य तो गया है ... ... ... ... ... २२ खभावपरिणतिखरूप ही हैं, और जीव जो खरूपकर शुद्ध परमभावको प्राप्त होगये। पुदलद्रव्यके अनादि कालके संयोगसे वि उनके तो शुद्धनय ही प्रयोजनवान है, भावपरिणति भी है, क्योंकि स्पर्शरस गंध और जो साधक अवस्थामें हैं उनके व्यवर्ण शब्दरूप मूर्तीक पुदलको देखकर यह वहारनय भी प्रयोजनवान है ऐसा कथन २५ जीव रागद्वेषमोहरूप परिणमता है और जीवादितत्त्वोंको शुद्धनयकर जानना सम्यक्त्व. . इसके निमित्तसे पुद्गल कर्मरूप होके जी है यह कथन ... ... ... ... ३० वसे बंधता है। इस तरह इन दोनोंके शुद्धनयका विषयभूत आत्माको बद्ध, स्पृष्ट अनादिसे बंधावस्था है । जब निमित्त पा अन्य अनियत विशेष इन पांच भावोंसे कर रागादिकरूप नहीं परिणमता तब रहितका कथन ... ... ... ... ३५ नवीन कर्म भी नहीं बंधते पुराने कर्म झड़ शुद्धनयका विषय आत्माको जानना सम्यजाते हैं इसलिये मोक्ष होती है। ऐसे रज्ञान है ऐसा कथन ... ... ... ४१ जीवके वसमय परसमयकी प्रवृत्ति होती सम्यग्दर्शनज्ञानपूर्वक चारित्र साधुको सेवन है। सो अव जीव सम्यग्दर्शन ज्ञानचारित्र भावरूप अपने खभावरूप परिणमता है करना योग्य है उसका दृष्टांतसहित कथन तब खसमय होता है और जब मिथ्याद- शुद्धनयके विषयभूत आत्माको जबतकं न जाने र्शन ज्ञान चारित्ररूप परिणमता है तबतक तबतक वे जीव अज्ञानी हैं ऐसा कथन । पुदलकर्ममें ठहरा हुआ परसमय है ऐसा अज्ञानीको समझानेकी रीति ... ... ५५ कथन ... ... ... ... ... अज्ञानीने जीवदेहको एक देख तीर्थकरकी जीवके पुदलकर्मके साथ बंध होनेसे परसम स्तुतिका प्रश्न किया उसका उत्तर... ५८-५९ यपना है सो यह सुंदर नहीं है इसमें जीव इस उत्तरमें जीव देहकी भिन्नताका दृश्य ... ६० संसारमें भ्रमता अनेक तरहके दुःख पाता चारित्रमें जो प्रत्याख्यान कहा गया है वह है, इसलिये खभावमें ठहरे सबसे जुदा क्या है ऐसा शिष्यका प्रश्न, उसका उत्तर होके अकेला ठहरे तभी सुंदर (ठोक) है. १०| ज्ञान ही प्रत्याख्यान है यह दिया है ... ६८ जीवको जुदापन और एकपनका पाना दुर्लभ है, क्योंकि बंधकी कथा तो सभी दर्शन ज्ञानचारित्रखरूप परिणत हुए आत्माप्राणी करते हैं यह कथा विरले जानते हैं का खरूप कहकर रंगभूमिकाका स्थल इसलिये ... ... ... ... ... ११ अडतीस गाथाओंमें पूर्ण ... ... ७५ इस कथाको हम अनुभवसे बुद्धिके अनुसार जीव अजीव दोनों बंधपर्यायरूप होके एक कहते हैं इसी तरह अन्य भी अनुभवसे देखने में आते हैं उनमें जीवका खरूप न परीक्षाकर ग्रहण करना... ... ... १३ | जाननेसे अज्ञानी जन जीवकी कल्पना शुद्धनयकर देखिये तो जीव प्रमत्त अप्रमत्त अध्यवसानादि भावरूप अन्यथा करते दोनों दशाओंसे जुदा एक ज्ञायकभावमात्र है उनकी व्यवस्थाका पांच गाथाओंमें है जो कि जाननेवाला है वही जीव है... १५।। वर्णन ... ... ... ... ... ७९
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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