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________________ विषयानुक्रमणिका ] समयसारः। २ wwwww .. विषय सं० विषय . पृ. सं. जीवका खरूप अन्यथा कल्पते हैं उनके आत्मा मिथ्यावादिभावरूप न परिणमे तव निषेधकी गाथा एक .... ... ... ८३ - कर्मका. कर्ता नहीं है ... ... ... १५२ अध्यवसानादिकभाव पुद्गलमय हैं जीव नहीं हैं । अज्ञानसे कर्म कैसे होता है ऐसे शिष्यका ऐसा कथन .... ... ... ... ८६ . प्रश्न और उसका उत्तर ... ... ... १५४ अध्यवसानादिक भावको व्यवहारनयसे जीव कर्मके कर्तापनका मूल अज्ञान ही है ... १५६ कहा गया है .... ... ... ... अज्ञानका अभाव होनेपर ज्ञान होता है तव परमार्थरूप जीवका खरूप ... ... ... .कर्तापन नहीं वर्णको आदि लेकर गुणस्थानपर्यंत जितने व्यवहारी जीव पुद्गलकर्मका कर्ता आत्माको - भाव हैं वे जीवके नहीं हैं यह कथन .... ९३ ___ कहते हैं यह अज्ञान है ... ... ... १६२ ये वर्णादिक भाव जीवके हैं ऐसा व्यवहारनय आत्मा पुद्गलकर्मका कर्ता निमित्तनैमित्तिककहती है निश्चयनय नहीं कहती ऐसा भावसे भी नहीं है, आत्माके योग उपदृष्टांतपूर्वक कथन . ... ... ... ९८ योग हैं वे निमित्तनैमित्तिकभावकर कर्ता वर्णादिक भाकोंका जीवके साथ तादात्म्य हैं और योग उपयोगका आत्मा कर्ता है १६४ - कोई. अज्ञानी माने उसका निषेध | अज्ञानी भी अपने अज्ञानभावका तो कर्ता ... कर्तृकर्माधिकार ॥२॥ है पुदलकर्मका कर्ता तो निश्चयकर नहीं यह अज्ञानी जीव क्रोधादिकमें जवतक वर्तता है क्योंकि परद्रव्यके तो परस्पर कर्तृकर्महै तबतक कर्मका बंध करता है ... ११५ भाव निश्चयसे नहीं ... ... ... १६७ आस्रव और आत्माका भेदज्ञान होनेपर जीवको परद्रव्यके कर्तापनेका हेतु देख उपबंध नहीं होता ... ... ... ... ११८ चारसे कहा जाता है कि यह कार्य जीआस्रवोंसे निवृत्त होनेका विधान ... ... १२२ | वने किया । यह व्यवहारनयका वचन है १७. आत्रोंसे निवृत्त हुए आत्माका चिन्ह ... १२६ मिथ्यात्वादिक सामान्य आस्रव और विशेष आस्रव और आत्माका भेदज्ञान होनेपर गुणस्थान ये बंधके कर्ता हैं निश्चयकर आत्मा ज्ञानी होता है तब कर्तृकर्मभाव इनका जीव कर्ता भोक्ता नहीं है ... १७४ भी नहीं होता ... ... ... ... १२९ जीव और आस्रवोंका भेद दिखलाया है जीवपुद्गलकर्मके परस्पर निमित्तनैमित्तिकभाव . अभेद कहने में दूषण दिया है ... ... १७७ है तो कर्तृकर्मभाव नहीं कहा जासकता १३५ | सांख्यमती पुरुष और प्रकृतिको अपरिणामी आत्मा और कर्मके कर्तृकर्मभाव जैसे नहीं | कहते हैं उसका निषेधकर पुरुष और. .. वैसे भोक्तभोग्यभाव भी नहीं अपने में ही पुद्गलको परिणामी कहा है. ... ... १८० - कर्ताकर्मभाव भोक्तृभोग्यभाव है ... १३७ ज्ञानकर ज्ञानभाव और अज्ञानकर अज्ञानव्यवहारनय आत्मा और पुद्गलकर्मके कर्तृक- - भाव ही उत्पन्न होता है १८८ : मभाव और भोक्तृभोग्यभाव कहती है.... १३८ | अज्ञानी जीव द्रव्यकर्म बंधनेका निमित्त होता आत्माको पुरलकर्मका कर्ता मानाजाय तो ..... महान. दोष, दो क्रियाओंका कर्ता आत्मा | पुद्गलका परिणाम तो जीवसे जुदा है और ठहरता है यह जिनमत नहीं ऐसा मान जीवका पुदलसे जुदा ... ... ... १९७ नेवाला मिथ्यादृष्टि है ऐसा कथन ... १४० कर्म जीवसे बद्धस्पृष्ट है या अबद्धस्पृष्ट ऐसे मिथ्यात्वादि आस्रवोंको जीव अजीवके भेदसे शिष्यके प्रश्नका उत्तर निश्चयव्यवहार दो प्रकारका कथन और उसका हेतु ... १४४ दोनों नोसे दिया है ... ... ... आत्माके मिथ्यात्व अंज्ञान अविरति ये तीन जो नयोंके पक्षसे रहित है वह कर्तृकर्मभापरिणाम अनादि है उनका कर्तृपना और वसे रहित समयसार शुद्ध आत्मा है । उनके निमित्तसे पुलको कर्मरूप होना १४७ ऐसा कह अधिकार पूर्ण... ... ... २०१ 2 सम. १९४
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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