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________________ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । [विषयानुक्रमणिका ... २७७ विषय पृ० सं० . विषय . . पृ. सं. पुण्यपापाधिकार ॥ ३॥ संबराधिकार ॥५॥ शुभअशुभकर्मके स्वभावका वर्णन ... ... २१३ | संवरका मूल उपाय भेदविज्ञान है उसकी रीदोनोंही कर्म बंधके कारण हैं .... तिका तीन गाथाओंमें कपन .... ... २५७ इसलिये दोनों कर्मोंका निषेध ... .... २१७ भेदविज्ञानसे ही संवर कैसे होता है ? ऐसे उसका दृष्टांत और आगमकी साक्षी . ... २१४ शिष्यके प्रश्नका दृष्टांतपूर्वक उत्तर ... २६२ मोक्षका कारण ज्ञान है ... ... ... २२० भेदज्ञानसे शुद्ध आत्माकी प्राप्ति होती है व्रतादिक पालै तौभी ज्ञानके विना मोक्ष नहीं है उससे संवर होनेका विधान ... ... २६३ मोक्ष साधनेवालेका खरूप कथन ... ... २२४ | संवर होनेका प्रकार तीन गाथामें ... २६५ परमार्थखरूप मोक्षका कारण कहा है अभ्य- | संवर होनेका क्रम कथन, अधिकार पूर्ण... २६७ का निषेध किया है ... ... ... २२५ . . निर्जराधिकार ॥६॥ कर्म मोक्षके कारणका घातता है उसका घा द्रव्य निर्जराका स्वरूप ... ... ... ... २७३ तना दृष्टांतद्वारा दिखलाया है ... ... २२६ भावनिर्जराका स्वरूप.... ... ... ... कर्म आप बंधस्वरूप ही है ... ... .. ज्ञानका सामर्थ्य कथन ... ... ... २७६ सम्यग्दर्शनशानचारित्र मोक्षके कारण हैं उनके वैराग्यका सामर्थ्य कथन ... प्रतिपक्षी घातक हैं सम्यक्त्वका प्रतिपक्षी ज्ञानवैराग्यसामर्थ्यका प्रगट कथन ... ... २७८ मिथ्यात्व, ज्ञामका प्रतिपक्षी अज्ञान, सम्यग्दृष्टिके अपने परके जाननेका सामान्य चारित्रका प्रतिपक्षी कषाय है ऐसा विशेषकर विधान... ... ... ... २०० कहा है । ऐसे तीसरा अधिकार पूर्ण इसी विधानसे वैराग्य होता है.. ... ... २८२ किया है ... ... ... ... ... २३१ सम्यग्दृष्टि रागी कैसे नहीं ऐसे प्रश्नका उत्तर २८५ . आनवाधिकार ॥४॥... अज्ञानी रागी प्राणी रागादिकको अपना पद आस्रवका खरूप वर्णन ... ... ... २३५ जानता है उस पदको छोड अपने वीतराग मिथ्यात्व अविरत योग कषाय ये जीव एक ज्ञायकभावपदमें ठहरनेका उप देश दिया है ... ... ... ... २८८ अजीवके भेदसे दो प्रकारके हैं वे कर्म आत्माका पद ज्ञायकस्वभाव हैं, ज्ञान में जो बंधको कारण हैं ... ... ... ... २३५ | भेद हैं वे कर्मके क्षयोपशमके निमित्तसे ज्ञानीके उनका अभाव कहा है ... ... २३८ हैं ऐसा कथन ... ... ... ... २९. रागद्वेषमोहरूप जीवके अज्ञानमय परिणाम ही | ज्ञान ज्ञामसे ही प्राप्त होता है ... ... २९२ - आस्रव हैं.... ... ... ... ... २३९ ज्ञानी परको क्यों नहीं प्रहण करता ऐसे रागादिक विना जीवके भावका संभव ... २४. शिष्य के प्रश्नका उत्तर ... ... ... २९५ ज्ञानीके द्रव्यभाव दोनों आस्रवोंका अभाव ज्ञानी परिग्रहका त्याग करता है उसका ..... दिखलाया है ... ... ... ... २४२ विधान ... ... ... ... ... २९६ ज्ञानी निरास्रव किस तरह है ऐसे शिष्य इस विधिसे परिग्रहको त्यागे तो कर्मसे लिप्तः .. प्रश्नका उत्तर ... ... ... ... २४३ नहीं होता... ... ... ... ... ३०२ • अज्ञानी और ज्ञानीके आस्रवका होना और कर्मके फलकी वांछाकर कर्म करे वह कमैसे न होनेका युक्तिकर वर्णन . ... ... २४४ | लिपटता है वांछाके विना कर्म करे तौभी रागद्वेषमोह ही अज्ञान परिणाम है वही बंधका कर्मसे नहीं लिप्त होता ... ... ... कारणरूप आस्रव है । वह ज्ञानीके नहीं उसका दृष्टांतद्वारा कथन ... हैं इसलिये ज्ञानीके कर्मबंध भी नहीं है । सम्यक्त्वके आठ अंग हैं उनमेंसे प्रथम तो. ऐसा कह अधिकार पूर्ण ... ... २५१/ सम्यग्दृष्टि निःशंक तथा सात भय रहित हैं ३१.
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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