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________________ विषयानुक्रमणिका] समयसारः। विषय पृ० सं० विषय पृ० सं० निष्कांक्षिता, निर्विचिकित्सा, उपगूहन, अमू- | बंधका छेद किससे करना ऐसे प्रश्नका उत्तर ढत्व, वात्सल्य, स्थितीकरण, प्रभावना ____ यह है कि कर्मबंधके छेदनेको प्रज्ञाशन इनका वर्णन निश्चयनयकी प्रधानतासे ... ३२२ ही कारण है ... ... ... ... ३८८ बंधाधिकार॥७॥ प्रज्ञारूप कारणसे आत्मा और बंध दोनोंको बंधका कारण कथन ... ... ... ३३१ जुदे जुदेकर प्रज्ञाकर ही आत्माको ग्रहण ऐसे कारणरूप आत्मा न प्रवर्ते तो बंध न __ करना बंधको छोड़ना ... ... ... ३९१ ___ हो ऐसा कथन ... ... ... ... ३३६ | आत्माको चैतन्यमात्र प्रहण करना ... ३९३ मिथ्यादृष्टिके बंध होता है उसके भाशयको . चेतना दर्शनज्ञानरूप है उनके विना अलग प्रगट कर दिखलाया है ... ... ... ३४० ____नहीं रहती ... ... ... ... ३९५ मिथ्यादृष्टिका आशय प्रगट अज्ञान कहा वह आत्माके सिवाय अन्य भावका त्याग करना, अज्ञान कैसे ऐसे प्रश्नका उत्तर ... ३४१ | ऐसा कोंन पंडित ( बुद्धिमान ) होगा कि बाह्य वस्तुके निश्चयनयकर बंधके कारणप परके भावको जानकर ग्रहण करेगा? कोई __नेका निषेध ... ... ... ... ३५३ नहीं करता ... ... ... ... ३९८ मिथ्यादृष्टि अज्ञानरूप अध्यवसायसे अपने जो परद्रव्यको ग्रहण करता है वह अपराधी आत्माको अनेक अवस्थारूप करता है है बंधनमें पड़ता है, अपराध जो नहीं .. ऐसा कथन ... ... ... ... ३५८ - करता वह बंधनमें भी नहीं पड़ता ... ४०० यह अज्ञानरूप अध्यवसाय जिसके नहीं है अपराधका स्वरूप वर्णन ... ... ... ४०२ उसके कर्मबंध नहीं होता ... ... ३६. शुद्ध आत्माके ग्रहणसे मोक्ष कहा, आत्मा यह अध्यवसाय क्या है ऐसे शिष्यके प्रश्नका तो प्रतिक्रमण आदिकर भी दोषोंसे छुट उत्तर ... ... ... ... ... ३६२ जाता है शुद्ध आत्माके ग्रहणसे क्या लाभ? इस अध्यवसानका निषेध है वह व्यवहार .ऐसे शिष्यके प्रश्नका उत्तर यह दिया है नयका ही निषेध है ..... ... ... कि प्रतिक्रमण अप्रतिकमणसे रहित तीजो केवल व्यवहारका ही आलंबन करता सरी अप्रतिक्रमणादि अवस्थाखरूप शुद्ध है वह मिथ्यादृष्टि है क्योंकि इसका आ आत्माका ही प्रहण है इसीसे आत्मा लंबन अभव्य भी करता है व्रत समिति निर्दोष होता है ... ... ... ... ४०४ गुप्ति पालता है ग्यारह अंग पढता है सर्वविशुद्ध-ज्ञानाधिकार ॥९॥ तौभी मोक्ष नहीं है ऐसा कथन ... ३६५/ आत्माके परद्रव्यके कर्ता भोकापनेके अभाअभव्य धर्मकी मी सामान्य श्रद्धा करता है वका कथन है उसमें पहले कापनेका तौभी उसके भोगके निमित्त है मोक्षके अभाव दृष्टांतपूर्वक कहा है ... ... ४१. निमित्त महीं है ... ... ... ... ३६७ कर्तापना जीव अज्ञानसे मानते हैं सो अनिश्चयव्यवहारका स्वरूप ... ज्ञानकी सामर्थ्य दिखलाई है ....... ४१४ रागादिक भावोंका निमित्त आत्मा है या पर- अज्ञानीको मिथ्यादृष्टि कहा है ... ... ४१५ द्रव्य ? उसका उत्तर ... ... ... ३७१ परद्रव्यके भोक्तापनका भी आत्माका स्वभाव मोक्षाधिकार ॥८॥ - नहीं है अज्ञानी भोक्ता है ऐसा कथन ... ४१८ मोक्षका खरूप कर्मबंधसे छटना है सो कोई ज्ञानी कर्मफलका भोका नहीं है ... ... बंधके स्वरूपको जानकर ही संतुष्ट होता जो आत्माको कर्ता मानते हैं उनके मोक्ष है कि इसीतरह बंधसे छट जायंगे उसका ___ नहीं है ऐसा कथन ... ... ... ४२५ निषेध है कि बंधको छेदे विना नहीं छूट अज्ञानी अपने भाबकर्मका कर्ता है ऐसा - सकते ... ... ... ... ... ३८३ युक्तिकर क्रथन ... ... ... ... बंधकी चिंता करनेपर भी बंध नहीं छूटता ३८५ आत्माके कर्तापना और अकर्ताफ्ना जिसबंध छेदनेसे ही मोक्ष होता है ... ३८६ तरह हे उस तरह स्याद्वादकर गाथा बंधसे छूटनेका कारण कथन : ... ... ३८७ तेरहमें सिद्ध किया है ... ... .... ४३६ ग्यारह अंग ५ .३६५ आत्मा है उसमें प ... ....
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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