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________________ ___ सागारधर्मामृत [ २६९ इसलिये “ यह वस्तु तुझे पंद्रह दिनमें दूंगा" यह वाक्य सत्यासत्य है, क्योंकि उसने जिस वस्तु के देनेको कहा था वह दी इसलिये उस वाक्यमें इतना सत्य है और पंद्रह दिनके बदले महिने वा वर्षदिनमें दी यह असत्य है । इसप्रकार ऐसे वाक्य सत्यासत्य कहलाते हैं। ऐसे वाक्य लोकमें बोले जाते हैं इसलिये ऐसे वाक्योंसे सत्याणुव्रतका नाश नहीं होता । अतएव अणुव्रती श्रावकको ऐसे वाक्य भी कहीं कहींपर बोलना चाहिये ॥ ४२ ॥ यत्स्वस्य नास्ति तत्कल्पे.दास्यामीत्यादि संविदा । व्यवहारं विरंधानं नासत्यासत्यमालपेत् ॥४३॥ अर्थ-जो पदार्थ अपना नहीं है उसके विषयमें ऐसी प्रतिज्ञा करना कि " तुझे मैं यह पदार्थ कल दिन अवश्य दूंगा" ऐसे वाक्योंको असत्यासत्य कहते हैं । क्योंकि जब वह पदार्थ अपना ही नहीं है तो कल दिन वह उसे कहांसे दे सकेगा ? अर्थात् कभी नहीं इसलिये ऐसे वाक्योंसे लोक व्यवहार रुक जाता है, उसमें अनेक तरहकी बाधायें आ जाती हैं। अतएव सत्याणुव्रती श्रावकको ऐसे असत्यासत्य वाक्य कभी नहीं बोलना चाहिये । ऐसे वाक्य सत्याणुव्रतका नाश करनेवाले हैं ॥ ४३ ॥ आगे-भोगोपभोगमें काम आनेवाले झूठके सिवाय जो
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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