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________________ २६८ ] चौथा अध्याय यद्यपि असत्य है तथापि लोकमें ऐसे वाक्य बोले जाते हैं और वे असत्य नहीं माने जाते इसलिये सत्याणुव्रती श्रावकको ऐसे वाक्य बोलनेमें सत्याणुव्रतका घात नहीं होता, इसीप्रकार रसो. इयेको कहते हैं " भात पका" इस वाक्यमें भी पहिलेके समान सत्यसे मिला हुआ असत्य भाषण है क्योंकि ' भात पका' इस वाक्यमें भात शब्दका प्रयोग चांवलों के बदलेमें किया गया है, वास्तवमें चांवल पकाये जाते हैं, भात नहीं, क्योंकि जब चावल पक जाते हैं और सुगंध कोमल और स्वाविष्ट हो जाते हैं तब उन्हें भात कहते हैं । परंतु लोक व्यवहारमें भात पकाओ ऐसा प्रयोग होता है इसलिये लोक व्यवहारके अनुसार ऐसा प्रयोग करनेमें भी सत्याणुवतका घात नहीं होता। इसीप्रकार — आटा पीसो ' ' मकान बनाओ' आदि वाक्य जानना । ये सब असत्यसत्य वाक्य हैं क्योंकि लोकमें ये बोले जाते हैं इसलिये सत्य हैं और वास्तवमें असत्य हैं इसलिये असत्यसत्य हैं । इनके बोलनेमें सत्याणुव्रतकी हानि नहीं होती। इसीप्रकार जो सत्य वचन असत्याश्रित हों अर्थात् सत्यासत्य हों उनके बोलनेसे भी सत्याणुव्रतमें कुछ हानि नहीं होती इसलिये ऐसे वाक्य भी व्रती श्रावकको वोलने | चाहिये । जैसे " यह वस्तु तुझे पंद्रह दिनमें दूंगा" ऐसा कहकर भी उस वस्तु के न मिलनेसे अथवा अन्य किसी कारणसे | पंद्रह दिनके बदले वह महिने वा वर्ष दिन बाद देता है।
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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