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________________ इंद्राःसंशब्दये युष्मानायात सपरिच्छदाः । अत्रोपविशतैतान् वो यजे प्रत्येकमादरात ॥८५४ आवाहनादिपुरस्सरं प्रत्येकपूजाप्रतिज्ञानाय पत्रेषु पुष्पाक्षतं क्षिपेत् । ___ अथासुरेन्द्रादीनां पृथक् पूजा। कोणस्थमग्न्यादिदिगुद्यसप्त कोणाधनीकं दृढमुद्रास्त्रम् । विशेषपादांबुजसख्याप्यच्चूडामणिं चारु यजेऽसुरेंद्रम् ॥८६॥ ओं ह्रीं असुरकुमारेन्द्राय इदं जलं गंध..................... कूर्मश्रितं सप्तदिगाश्रिनोरु नावादिसैन्यं फणिपाशपाणिम् । जिनांघ्रिपुष्पांकफलांकमौलिं नागेंद्रमुनिद्रमुदर्चयामि ॥ ८७ ॥ ओं ह्रीं नागकुमारेंद्रीय इदं...-..... तायादिकक्षाकुलसप्तदिकं धौतासिदंड द्विरदाधिरूढम् । यजे सुपर्णेन्द्रमपास्तमोहविचंद्रपादाप्तशिरः सुपर्णम् ॥ ८८ ॥ करनेके नियमके लिये पत्तोंपर पुष्प अक्षत क्षेपण करे ॥ ८५ ॥ अब सुरेंद्रोंकी जुदी २ पूजा है कहते हैं । “कोणस्थ " इत्यादि तथा “ओं ह्रीं" इत्यादि बोलकर असुरेंद्रको जल आदि आठ द्रव्य चढावे ॥ ८६ ॥ “कूर्मश्रितं " इत्यादि तथा ओं ह्रीं” बोलकर नागकुमारेंद्रको अर्थ चढावे ॥ ८७ ॥ “ताादिकक्षा" इत्यादि तथा ओं ह्रीं बोलकर सुपर्णकुमार इंद्रको
SR No.022357
Book TitlePratishtha Saroddhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Manharlal Pandit
PublisherJain Granth Uddharak Karyalay
Publication Year1918
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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