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________________ TOITO ॥६०॥ |अ०३ भा०टी० भक्त्यास्मिन्नखिलज्ञयज्ञसमयेऽस्माभिः समभ्यर्चिताः प्रत्यूहानपहत्य विष्टपहितां तसिद्धिमातन्वताम् ॥ ८२ ॥ एतद्वंदनामुद्रया पठित्वा भक्त्या पंचांगप्रणामं कुर्यात् । इति जिनमातृपूजनविधानम् । अथ द्वात्रिंशत्पुत्रारोपितशक्रार्चनम् । तत्तादृक्सुतपोनुषंगजपृथक् पुण्यानुभावोद्भव स्वज्ञैश्वर्यपराभिमानिकरसश्रोतोवगाहोत्सवान् । हृत्वान्यस्य यस्य मत्रविहिता सतीन् कराब्जोल्लस द्यांगोल्बणितावीन् सुरपतीन द्वात्रिंशतं संयजे ॥ ८३ ॥ त्रिभुवनपतियज्ञे व्यापूतानां व्यवायान् खरमृदुकुदृशां तु द्वेषमस्पष्टतां च । प्रतिनियतनियोगव्यक्तदुरिशक्तीन व्युपशमयितुमिंद्रानद्य समानयामः॥८४॥ द्वात्रिंशदिंद्रसमुदायपूजाविधानाय पूर्वविधिं विदध्यात् " इत्येता" इत्यादि श्लोक पढकर वंदनामुद्रासे पंचांग नमस्कार करे ॥ ८२॥ इसप्रकार जिनमाताओंकी पूजाविधि कही गई है। अब बत्तीस इंद्रोंकी पूजा कहते हैं-" तत्तादृक् || इत्यादि दो श्लोकोंसे बत्तीस इंद्रोंकी समुच्चयपूजा करने के लिये पूर्वकी तरह कही हुई विधि । करे ॥८३॥८४॥"इंद्रा" इत्यादि श्लोक पढकर आवाहन आदि पूर्वक हर एककी पूजा ॥६०॥
SR No.022357
Book TitlePratishtha Saroddhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Manharlal Pandit
PublisherJain Granth Uddharak Karyalay
Publication Year1918
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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