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________________ 25 उपाध्याय विनयविजय : व्यक्तित्व एवं कृतित्व रचित सिद्धहेमशब्दानुशासन के आधार पर दो कृतियों का निर्माण किया- १. हैमलघुप्रक्रिया २. हैमप्रकाश। इनका संक्षिप्त परिचय आगे दिया जा रहा है(1) हैमलघुप्रक्रिया- पाणिनि की अष्टाध्यायी की भांति १२वीं शती में हेमचन्द्रसूरि ने 'सिद्ध हैमशब्दानुशासन' नामक व्याकरण ग्रन्थ आठ अध्यायों में लिखा था। उसके अन्तिम अध्याय में प्राकृत भाषा का व्याकरण तथा प्रथम सात अध्यायों में संस्कृत भाषा का व्याकरण सूत्र शैली में निबद्ध है। अष्टाध्यायी को आधार बनाकर जिस प्रकार भट्टोजी दीक्षित ने 'सिद्धान्त कौमुदी' का तथा वरदराज ने 'लघु सिद्धान्त कौमुदी' का निर्माण किया। उसी प्रकार उपाध्याय विनयविजय गणी ने हैमशब्दानुशासन के सूत्रों को प्रक्रिया क्रम में व्यवस्थित कर उस पर वृत्ति का निर्माण किया। इस कृति को उन्होंने 'हैमलघुप्रक्रिया' नाम दिया। यह पुस्तक जैन संत-सतियों द्वारा अध्ययन का आधार बनी तथा इससे उन्होंने संस्कृत व्याकरण का अच्छा अभ्यास किया। इसीलिए कुछ जैन परम्पराओं में इस हैमलघुप्रक्रिया के अध्ययन का क्रम आज भी प्रचलित है। इस का निर्माण राधनपुर में विक्रम संवत् १७१० में विजयादशमी के दिन पूर्ण हुआ। यह कृति एक प्रकार से हैमव्याकरण को समझने में कुंजी की भांति है। इसका परिमाण २५०० श्लोक जितना आंका गया है। ___... हैमलघुप्रक्रिया में क्रमशः संज्ञा, सन्धि, स्वरान्त पुंल्लिंग, स्वरान्त स्त्रीलिंग, स्वरान्त नपुंसकलिंग, व्यंजनान्त पुंल्लिंग, व्यंजनान्त स्त्रीलिंग, व्यंजनान्त नपुंसकलिंग, सर्वनाम शब्द, अव्यय, स्त्री प्रत्यय, कारक प्रकरण, समास प्रकरण, तद्धित प्रकरण, दशगण, आत्मनेपद, परस्मैपद, णिगन्तादि प्रक्रिया, कृदन्त आदि अधिकारों का निरूपण है। ऐसा उल्लेख प्राप्त होता है कि उन्होंने अपने सतीर्थ्य कान्तिविजय जी को संस्कृत व्याकरण पढ़ाने के लिए इस हैमलघुप्रक्रिया का निर्माण किया था। (2) हैमप्रकाश- यह हैमलघुप्रक्रिया पर विस्तृत प्रकाश डालने वाले विवरण से युक्त कृति है। इसे ३४००० श्लोक जितने परिमाण का स्वीकार किया गया है। यह रचना हैमलघुप्रक्रिया के २७ वर्ष पश्चात् विक्रम संवत् १७३७ में पूर्ण हुई थी। इसकी सम्पूर्ण विषयवस्तु को पूर्वार्ध एवं उत्तरार्द्ध इन दो विभागों में विभक्त किया गया है। हैमप्रकाश की मूल विषय वस्तु वही है जो हैमलघुप्रक्रिया की है, किन्तु इसमें अनेक समस्याओं को उठाकर उनका समाधान किया गया है। विनयविजय गणी ने व्याकरण के प्रसिद्ध ग्रन्थों वाक्यपदीय, प्रौढमनोरमा, वैयाकरणभूषण सार, सिद्धान्तकौमुदी, हेमवृहन्न्यास, वाक्यप्रकाश आदि ग्रन्थों का भी नामोल्लेख किया है। व्याकरण के विशेष अभ्यासियों के लिए यह हैमप्रकाश उत्कृष्ट ग्रन्थ है। यह व्याकरण ग्रन्थ ईस्वी सन् १९३७ एवं १६५४ में पूर्ण प्रकाशित हो गया है। इस व्याकरण
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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