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________________ 24 लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन ऋषभानन ८. अनन्तवीर्य ६. सुरप्रभ १०. विशाल ११. वज्रधर १२. चन्द्रानन १३. चन्द्रबाहु १४. भुजंग १५. ईश्वर १६. नेमिप्रभ १७. वीरसेन १८. महाभद्र १६. देवयशस २०. अजितवीर।। (10) वृषभतीर्थपति स्तवन- यह एक लघु स्तवन है जो संस्कृत भाषा के छह पद्यों में निर्मित है। इसमें आदिनाथ का गुणगान होने से इसे 'आदि जिन स्तवन' भी कहा जाता है। इसके अन्तिम पद्य में वृषभ का तथा श्लेष द्वारा विनय का उल्लेख हुआ है। --- (11) धर्मनाथ नी विनति रूप स्तवना- विक्रम संवत् १७१६ में सूरत चातुर्मास में इस गुजराती कृति की रचना हुई। इसमें कुल १३८ कड़ियाँ हैं, जो दोहा और चौपाई छन्द में निबद्ध है। इस कृति का मुख्य विषय सिदर्षि कृत उपमिति भव प्रपंच कथा की रूपरेखा है तथा इसका गौण विषय तीर्थकर धर्मनाथ के प्रति की गई विनति रूप विज्ञप्ति है। इस कृति में मोहनीय कर्म, काम, राग, द्वेष आदि का सुन्दर निरूपण हुआ है। क्षमा आदि दस धर्मों, अनशन आदि द्वादश तपों तथा सतरह प्रकार के संयमों का भी वर्णन हुआ है। रूपकों के माध्यम से इसमें चारित्र धर्म तथा रागादि का सुन्दर निरूपण हुआ है। (12) नेमिनाथ बार मासी- २७ कड़ियों में निबद्ध यह गुजराती भाषा में विक्रम संवत् १७२८ में रची गई थी। इसकी अन्तिम कड़ी में राजुल-नेमि संदेश का निरूपण हुआ है। यह एक प्रसिद्ध कथानक है जिसमें नेमिनाथ ने बाड़े में बंधे पशुओं पर करुणा कर उन्हें मुक्त करवा दिया तथा विवाह का विचार कर दीक्षित हो गए। राजीमति (राजुल) ने भी संसार त्याग की भावना से पर्वत की ओर प्रयाण कर दिया। नेमिनाथ बार मास स्तवन के अन्तर्गत कवि ने कल्पना की है कि राजुल अपनी ओर से नेमिनाथ को संदेश भेजती है तथा बारह महिनों का वर्णन करती हुई प्राणवल्लभ नेमिनाथ से मिलने की भावना व्यक्त करती है। नेमिनाथ उसके संदेश का उत्तर देते हैं कि तुम मुक्ति मन्दिर में आओ, वहाँ अपना मिलन होगा। यह एक प्रकार का संदेश काव्य है। (13) शाश्वत जिनभास- नौ कड़ियों में निर्मित यह गुजराती कृति पालिताणा तीर्थ के अम्बालाल चुन्नीलाल ज्ञान भण्डार में सुरक्षित है। इस कृति में ऋषभ, चन्द्रानन, वर्द्धमान और वारिषेण इन शाश्वत नाम वाले चार तीर्थंकरों का गुणोत्कीर्तन है। 5.व्याकरण विषयक साहित्य वाचक विनयविजय ने काशी में अपने गुरुभ्राता उपाध्याय यशोविजय के साथ जो अध्ययन किया उसमें यशोविजय जी ने जहाँ न्याय एवं नव्यन्याय को मुख्य विषय बनाया वहाँ विनयविजय जी ने व्याकरण को अपने अध्ययन का प्रमुख विषय बनाया। यही कारण है कि उन्होंने व्याकरण के क्षेत्र में वरदराज, भटोजी दीक्षित विद्वानों की भांति उल्लेखनीय कार्य किया। उन्होंने हेमचन्द्रसूरि द्वारा
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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