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________________ 13 उपाध्याय विनयविजय : व्यक्तित्व एवं कृतित्व सम्पूर्ण लोक का चौदह रज्जुओं में विस्तृत विवेचन किया गया है। वह अधोलोक, मध्यलोक और ऊर्ध्वलोक में स्थित स्थलों का गणितीय विवेचन करता है। जैन दर्शन में निरूपित क्षेत्र लोक का विवेचन बिना गणित के हदयगंम नहीं होता। इसमें अंगुल उत्सेधांगुल, आत्मांगुल, प्रमाणांगुल, धनुष, योजन, रज्जु, खंडुक आदि के गणितीय नाप की आवश्यकता होती है। लोकप्रकाश के सोलहवें सर्ग में भरतक्षेत्र का विष्कम्भ, शर, जीवा, धनुःपृष्ट, वाहा एवं क्षेत्रफल से वर्णन किया गया है। काललोक के विवेचन में भी विनयविजय के गणितीय ज्ञान की अभिव्यक्ति हुई है । समय, आवलिका, मुहूर्त्त, अहोरात्र, पक्ष, मास, वर्ष, युग, बीसी, संख्यात, असंख्यात, पल्योपम, सागरोपम, अनन्त, अर्धपुद्गलपरावर्तन आदि का निरूपण उनके गणितीय ज्ञान का बोध कराता है। क्षेत्रलोक एवं काललोक का विवेचन गणित के साथ उनकी खगोलज्ञता एवं भूगोलज्ञता को भी पुष्ट करता है। ‘इन्दुदूत' नामक संदेशकाव्य में उपाध्याय विनयविजय ने जोधपुर से सूरत तक के मार्ग का रमणीय वर्णन किया है जो उनके आधुनिक भूगोल ज्ञान का परिचय करवाता है । इन्दुदूत के श्लोक संख्या ३१ से १०० तक के श्लोकों में उपाध्याय विनयविजय जी ने जोधपुर से सूरत जाने के मार्ग को बताया है इस मार्ग के प्रमुख स्थल हैं- सुवर्णगिरि, जलंधर (जालोर), श्रीरोहिणी (सिरोही), अर्बुदाचल (आबू), अचलगढ़, सरस्वती तीर पर आया सिद्धपुर, साबरमती, राजनगर ( अहमदाबाद), वटपद्र ( वडोदरा ), नर्मदानदी पर भृगुपुर (भरूच) और तरणिनगर (सूरत)। आश्चर्य है कि लगभग यही मार्ग आज हमारा रेलमार्ग है | 8. जैन दर्शन के कुशल प्रस्तोता विनयविजयगणी ने लोकप्रकाश के माध्यम से जैन दर्शन की अद्भुत प्रस्तुति की है । द्रव्यलोक में उन्होनें ३७ द्वारों के माध्यम से जीव तत्त्व मीमांसा का सूक्ष्म प्रतिपादन किया है। षड्द्रव्यों की भी उन्होनें प्रारम्भिक दूसरे सर्ग में चर्चा की है। पुद्गल द्रव्य का विशेष विवेचन किया है। काल द्रव्य का विवेचन करते हुए उन्होनें इसके द्रव्य होने के पक्ष में अनेक तर्क उपस्थापित किये हैं। काल का द्रव्यत्व स्वीकार न करने का पक्ष भी युक्तियुक्त रीति से प्रस्तुत किया है। भावलोक के अन्तर्गत जीव के औपशमिक आदि छह भावों का सुन्दर निरूपण किया है। आगमिक परम्परा के जैन दर्शन को प्रस्तुत करने में लोकप्रकाश की महती भूमिका रही है। इसके अतिरिक्त नयकर्णिका में आपने नैगम आदि नयों का २३ पद्यों में निरूपण किया है। अध्यात्म, इतिहास, स्तवन एवं तत्त्वज्ञान के माध्यम से आपने जैन दर्शन की प्रामाणिक प्रस्तुति की है । आगम एवं दर्शन के गहन ज्ञान के आधार पर जैन धर्म-दर्शन के तात्त्विक विवेचन में आप सिद्धहस्त रहें हैं।
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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