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________________ 12 लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन 5. आगमेतर ग्रन्धों के ज्ञाता जिस प्रकार उपाध्याय विनयविजय को आगमों का गहन ज्ञान था उसी प्रकार अनेक आगमेतर जैन ग्रन्थों का भी तलस्पर्शी बोध था। लोकप्रकाश में जीवसमास सूत्र, वृत्ति, संग्रहणी बृहदवृत्ति, प्रवचनसारोद्धार वृत्ति, प्रज्ञापना वृत्ति, अनुयोगद्वार चूर्णि, आचारांग नियुक्ति, लीलावती, अंगुल सप्ततिका, लघुक्षेत्र समास, क्षेत्र समास की बृहद्वृत्ति, स्थानांग सूत्र वृत्ति, सिद्धहैम सूत्र, नवतत्व अवचूरी, तत्त्वार्थ सूत्र, तत्त्वार्थ भाष्य, तत्त्वार्थ वृति, सर्वार्थसिद्धि, नवतत्त्व प्रकरण, गुणस्थान क्रमारोह, विशेषावश्यक भाष्य, औपपातिक सूत्रवृत्ति, सिद्ध प्राभृत टीका, कर्मग्रन्थ, शिवशर्माचार्य कृत शतक ग्रन्थ, रत्नाकरावतारिका, पंचसंग्रह, राजप्रश्नीय वृत्ति, शक्रस्तव, महाभाष्य, महानिशीथसूत्र, हेमचन्द्राचार्य कृत अभिधान चिन्तामणि, वनस्पतिसप्ततिका आदि अनेक ग्रन्थों का उल्लेख यह सिद्ध करता है कि उपाध्याय विनयविजय बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे एवं उन्होंने अनेकानेक जैन ग्रन्थों का अध्ययन किया था। यहां जिन ग्रन्थों का उल्लेख किया गया है, उनमें आगम का व्याख्या साहित्य प्रमुख है। आगमिक व्याख्या साहित्य के पांच अंग माने गए हैं- १. नियुक्ति २.भाष्य ३.टीका ४. चूर्णि ५. टिप्पण, अवचूरि। विभिन्न आगमों पर यह व्याख्या साहित्य आज भी उपलब्ध है। उपाध्याय विनयविजय जी आचारांग नियुक्ति, आवश्यक नियुक्ति, दशवैकालिक नियुक्ति आदि नियुक्तियों के अधीत विद्वान् थे।इसी प्रकार विशेषावश्यक भाष्य, व्यवहार भाष्य आदि का भी उन्हें अध्ययन था। विभिन्न चूर्णियों, अवचूरीयों और टीकाओं का भी उन्होंने अध्ययन किया था। आगमिक व्याख्या साहित्य के अतिक्ति स्वतन्त्र रूप से निर्मित आगम परम्परा के साहित्य तथा तत्त्वार्थ सूत्र एवं उनके टीकाओं का भी उन्हें आवश्यक बोध था। वे मूलतः श्वेताम्बर परम्परा के विद्वान् थे तथापि सर्वार्थसिद्धि आदि कुछ दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थों का भी उन्होंने अध्ययन किया था। 6. टीकाकार कल्पसूत्र जैन परम्परा का एक प्रमुख आगम है जिसमें तीर्थंकर परम्परा के साथ भगवान महावीर का जीवन दर्शन वर्णित है। उपाध्याय विनयविजय ने कल्पसूत्र पर सुबोधिका टीका का संस्कृत में लेखन किया जो विक्रम संवत् १६६६ में पूर्णता को प्राप्त हुआ। ४१५० श्लोक परिमाण इस टीका से उनकी व्याख्या पद्धति का बोध होता है। अपने व्याकरण ग्रन्थ हैमलघुप्रक्रिया पर संस्कृत में ३४००० श्लोक परिमाण टीका हैमप्रकाश का लेखन किया, जो संवत् १७३७ में रतलाम में पूर्णता को प्राप्त हुआ। 7.भूगोलज्ञ,खगोलज एवं गणितज्ञ लोकप्रकाश ग्रन्थ में क्षेत्रलोक का विवेचन भूगोल, खगोल एवं गणित से सम्बद्ध है। इसमें
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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