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________________ उपाध्याय विनयविजय : व्यक्तित्व एवं कृतित्व की दृष्टि से उन्होंने जैन दर्शन को ही अपनी लेखनी का विषय बनाया। उन्हें जैनदर्शन का तलस्पर्शी एवं समग्र बोध था। इसका प्रमाणभूत ग्रन्थ लोकप्रकाश है। लोकप्रकाश में द्रव्यलोक, क्षेत्रलोक, काललोक एवं भावलोक इन चार विभागों में जैन दर्शन की आगमानुसारी समग्र प्रस्तुति करने के साथ उन्होंने यथावसर अपनी ओर से भी तकों का प्रयोग किया है। उदाहरण के लिए काल को द्रव्य स्वीकार करने और नहीं करने के मतों का उल्लेख करते हुए उन्होनें पुरातन तकों का संग्रह करने के ' साथ अपनी ओर से नए तर्क भी प्रस्तुत किए हैं। 4.आगम वेला 'लोकप्रकाश' और 'भगवती सूत्र नी सज्झाय', इरियावहिय सज्झाय' आदि कृतियाँ उपाध्याय विनयविजय को श्रेष्ठ आगमवेत्ता सिद्ध करती हैं। लोकप्रकाश में पदे पदे भगवतीसूत्र, अनुयोगद्वार सूत्र, नन्दी सूत्र, दशवैकालिक सूत्र, प्रज्ञापना सूत्र, स्थानांग सूत्र, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र, उत्तराध्ययन सूत्र, आचारांग सूत्र, समवायांग सूत्र, जीवाजीवाभिगम सूत्र, सूर्यप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति आदि जैन आगमों का अनुसरण किया गया है। वे कहीं इन आगमों की गाथाओं या सूत्रों का भी उल्लेख करते हैं तो कहीं बिना उल्लेख किए हुए ही आगम की मान्यताओं के आधार पर जैन धर्म-दर्शन को प्रस्तुत करते हैं। लोकप्रकाश एक ऐसा ग्रन्थ है जिसको पढ़कर कोई भी जिज्ञासु आगमानुसारी जैन धर्म दर्शन की मान्यताओं का परिचय प्राप्त कर सकता है। रचनाकार ने यद्यपि लोकप्रकाश का निर्माण श्लोकों में किया है किन्तु वे यथावश्यक मान्यता भेद एवं टिप्पणों का प्रयोग गद्य में भी कर देते हैं। विनयविजय का यह ग्रन्थ उनके आगम पाण्डित्य एवं कवित्व की उच्च क्षमता दोनों का समन्वय स्थापित करता है। ___ 'भगवती सूत्र नी सज्झाय' नामक कृति में पांचवें अंग की विशिष्टता, इसके वक्ता, श्रोता एवं श्रवण की महिमा का विस्तार से कथन किया गया है। __'इरियावहिय सज्झाय' आवश्यक सूत्र के इच्छाकारेणं पाठ से सम्बद्ध है। इसमें अभिहया आदि दस प्रकार की विराधनाओं, ५६३ तरह के जीवों, १८२४१२० प्रकार के मिच्छामि दुक्कडं का निरूपण किया गया है। _ 'पुण्यप्रकाश स्तवन' और षडावश्यक स्तवन उनके गहन आगमज्ञान को अभिव्यक्त करते हैं। गुजराती भाषा में निर्मित पुण्यप्रकाश स्तवन में अतिचारों की आलोचना, महाव्रत, अणुव्रत, क्षमायाचना, अठारह पापस्थान आदि प्रसंगों का वर्णन किया गया है। 'षडावश्यक स्तवन' आवश्यक सूत्र पर आधारित है। जिसमें सामायिक, चउवीसत्थव, वन्दना, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग एवं प्रत्याख्यान आवश्यकों का निरूपण किया गया है।
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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