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________________ 10 लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन २७ पद्यों में रचित स्तवन है जो उनके प्राकृत कवित्व की प्रतिभा को इंगित करता है। हिन्दी भाषा में उनकी स्वतंत्र रचना तो नहीं है किन्तु मिश्रित हिन्दी भाषा में विनयविलास उनकी आध्यात्मिक कृति है जो उनकी हिन्दी काव्य रचना की योग्यता का संकेत करती है। 2. महान् वैयाकरण कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्रसूरि कृत 'सिद्धहेमशब्दानु- शासन' के अध्याय क्रम को प्रक्रिया क्रम में करने का उपाध्याय विनयविजय ने प्रयास किया है। उपाध्याय विनयविजय ने इस प्रक्रिया क्रम में सूत्र की लघुवृत्ति रूप 'हैमलघुप्रक्रिया' ग्रन्थ और बृहद वृत्ति स्वरूप 'हैमप्रकाश' ग्रन्थ की रचना की। २५०० श्लोक प्रमाण का यह हैमलघुप्रक्रिया ग्रन्थ व्याकरण रूप रत्नकोश के अर्गला की छोटी सी कुंजी है, जिससे व्याकरण अभ्यास का सरल मार्ग प्रशस्त होता है। ३४००० श्लोक परिमाण महाकाय ग्रन्थ हैमप्रकाश में उपाध्याय विनयविजय ने उन्हीं सूत्रों पर विस्तृत टीका लिखी है। इसमें हैमलघुप्रक्रिया के दुर्गम सूत्रों का अधिक स्पष्टता से बोध करवाया गया है। अतःइन दो ग्रन्थों में उनकी व्याकरण विषयक इस प्रतिभा से उन्हें महान् वैयाकरण स्वीकार करना उचित है। उन्होनें यह कार्य उसी प्रकार किया है, जिस प्रकार पाणिनि की अष्टाध्यायी पर भट्टोजिदीक्षित ने सिद्धान्तकौमुदी एवं लघुसिद्धान्तकौमुदी की रचना की। 3. दार्शनिक उपाध्याय विनयविजय रचित 'अध्यात्मगीता, नयकर्णिका, विनयविलास, शान्तसुधारस, लोकप्रकाश, पंच समवाय स्तवन आदि ग्रन्थों में तत्त्वज्ञान, अध्यात्म, न्याय, नय आदि विषयों के समावेश से उनकी दार्शनिकता का बोध होता है। नयकर्णिका में नैगम, संग्रह आदि जैनाभिमत नयों की चर्चा है। अध्यात्मगीता में धर्म का स्वरूप, संसारी जीव की धर्म बिना दुर्दशा, संसारी जीव का नरकादि गतियों में परिभ्रमण, मिथ्यात्वी को आत्मज्ञान की आवश्यकता आदि का निरूपण है। शान्तसुधारस में अनित्यता, अशरणता, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशौच, आश्रव, संवर, निर्जरा, लोकस्वरूप, बोधिदुर्लभता, मैत्री, प्रमोद, करुणा और माध्यस्थ्य इन सोलह भावनाओं का विस्तार से कथन हुआ है। किसी भी कार्य में होने वाले पांच कारणों -काल, स्वभाव, नियति, कर्म और उद्यम का विस्तृत उल्लेख 'पंच समवाय स्तवन' नामक ग्रन्थ में हुआ है। 'लोकप्रकाश' में द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव चतुर्विभाग में लोक का विभाजन, षड्द्रव्य, पुद्गलपरावर्तन, अष्टकर्म, चौदह गुणस्थान, औदयिक आदि पांच भाव आदि विषयों का निरूपण है। उपाध्याय विनयविजय ने काशी में उपाध्याय यशोविजय के साथ नव्य न्याय एवं अन्य दर्शन प्रस्थानों का अध्ययन किया था। अतः उन्हें जैनदर्शन के साथ अन्य दर्शनों का भी ज्ञान था। लेखन
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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