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________________ तिरस्काररुप थयला पण सज्जन पुरुष पोताना गुणोथी हमेशां उपकार करे छे ॥ १३ ॥ जे प्रमाणे स्वभावथी चन्द्रमाने शीतल अने सूर्यने उष्ण जोइ कोइ पण रागद्वेष करता नथी, ते प्रमाणे सज्जनमां गुण अने दुर्जन मां दोष जोईने सत्पुरुष कांइ पण हर्ष विषाद करता नथी ॥ १४ ॥ जे धर्मनी गणधरोवडे परीक्षा थयली छे ते धर्मनी परीक्षा माराथी केवी ते थई शके ? केमके जे वृक्षने हाथी तोडी नांखे छे तेने शशक [ खर गोश] कदापि तोडी शकतो नथी ॥ १५ ॥ परंतु प्रवीण आचार्योए जे धर्ममां प्रवेश करीने तेने सरल करी दीधो, तेमां मारा सरखा मूर्खनो पण प्रवेश थई शके छे, केमके हीरानी सोयथी वांधेला मोतीमां नरम सूतर पण प्रवेश करतुं जोईए छीए ॥ १६ ॥ लौकिक जम्बूवृक्षवडे विंटलायलं अनेक रत्ननी रचना वडे युक्त तथा अनेक राजाओथी सेवाकरायला चक्रवर्ति राजानी माफक चारे तरफथी अनेक द्वीप समुद्रोथी विंटायलो लाख योजन छे व्यास जेनो एवो गोलाकार आ जम्बूद्विप छे ॥ १७॥ एमां हिमाचल पर्वतनी दक्षिण तरफ त्रण समुद्रोवडे विंटलायलं धनुषाकार अति मनोहर आ भरतक्षत्र छे, जे एवं शोभे छे के जे पोतानी धनुषाकाररुप शोभाथी कामदेवना धनुषने पण तिरस्कार करे छे ॥ १८ ॥ अने षट् आवश्यको वडे मुनिओना निर्दोष चारित्रनी माफक पोतानो अति मनोहर छ खंडाथी मनुष्योने याचना करवालायक चक्रवर्तिना जेवी लक्ष्मिने [शोभाने] प्रकट करे छे ॥ १९ ॥ केमके आ क्षेत्रना हिमाचलमांथी निकलेली गंगा सिन्धु बे मोटी नदिओथी तथा विजयाई पर्वतवडे विभाग करला ६ खंड थई गया छे. के जे प्रमाणे शुभ अशुभरुप कर्मोना समूहना अनेक विशेषता
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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