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________________ माटे मन वचन कायाना त्रणे योगोथी ६ विभाग थई जाय छे. ॥ २० ॥ आ भरतक्षेत्रनी वचमां अनेक रमणीय स्थानोथी संयुक्त पूर्वना समुद्र किनाराथी पश्चिम समुद्रना किनारा पर्यंत लांबो यथार्थ नामनो धारक विजया नामनो पर्वत छे, ते एवो शोभे छे के जाणे पोतानुं शरीर पाथरीने शेषनागज पडेलो छे ॥ २१ ॥ ए विजयाई पोताना किर णोना समूहथी नाश कर्यों छे मोटो अन्धकार जेणे एवो प्रकाशमान थतो पृथ्विने फाडीने निकळेलो बीजा सूर्यनी माफक शोभी रह्यो छे ॥ २२ ॥ आ विजया पर्वतनी उत्तर अने दक्षिण तरफ विद्याधरोथी सेवनीय बे श्रेणी छे, ते केवी छे के सांभळवालायक मनोहर छ गीत जेना एवा भमराओ सहित हाथीना बन्ने गंडस्थलो उपर जाणे मदरेखाज छे ॥ २३ ॥ तेमांथी दाक्षिण श्रेणीपर ५० अने उत्तर श्रेणीपर ६ ० ए प्रमाणे ११० निर्दोष कांतिवाला विद्याधरोना नगर द्वादशांगना ज्ञाता गणधर भगवाने कह्या छे ॥ २४ ॥ ए ऊंचो विजयाई पर्वत विचित्र प्रकारना पात्र [ पुज्य पुरुष ] कटक [ सेना ] अने रत्नोना खजानाथी प्रकाशमान देव विद्याधरोथी सेवनीय छे चरण जेना एवा चक्रवर्ति राजानी समान शोभे छे ॥ २५ ॥ एना उपर सिध्धवरकूटना अलौकिक चैत्यालयोमा विराजमानः : जिनेन्द्र भगवानना अलौकिक प्रतिबिम्ब सेवन करेला भव्य पुरुषोना दुःखोने जेम अग्निज्वालाथी शीतनो नाश थाय तेम नष्ट करे छे ॥ २६ ॥ ज्यां आगल कर्मरुपी रजने नष्ट करवामां तत्पर एवा चारणऋध्धिना धारक मुमुक्षु [ मोक्षनी इच्छा करवावाला ] मुनीगण पोताना वचनोथी अहंकास्ने दूर करवामां तत्पर एवा गंभीर शब्दवाला वादलोनी वर्षा सामन जनसमूह ने आशीर्वाद आपता उपदेश करे छे ॥ २७ ॥ए विजया पर्वतनी
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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