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________________ बेइन्द्रिय को १) स्पर्शेन्द्रिय, २) रसनेन्द्रिय, ३) वचन बल, ४) कायबल, ५) श्वासोच्छ्वास तथा ६) आयुष्य, ये छह प्राण होते हैं । तेइन्द्रिय को घ्राणेन्द्रिय तथा उपरोक्त छह, ये सात प्राण होते हैं । चतुरिन्द्रिय को चक्षुरिन्द्रिय अतिरिक्त होने से उपरोक्त सात सहित आठ प्राण होते हैं । असंज्ञी पंचेन्द्रिय को श्रोत्रेन्द्रिय अधिक होने से नौ प्राण होते हैं । संज्ञी पंचेन्द्रिय को मनोबल प्राण सहित कुल १० प्राण होते हैं । अजीव तत्त्व के चौदह भेद - गाथा धम्मा- धम्मागासा तिय-तिय भेया तव अद्धा य । खंधा देस पसा, परमाणु अजीव चउदसहा ॥८॥ अन्वय तिय-तिय-भेया-धम्म - अधम्म - आगासा, तह एव अद्धा य खंधा - देसपएसा, परमाणु चउदसहा अजीव ॥ ८ ॥ संस्कृत पदानुवाद धर्माऽधर्माऽकाशा- स्त्रिकत्रिक भेदास्तथैवाद्धा च । स्कन्धा देश प्रदेशाः, परमाणवोऽजीवश्चतुर्दशधा ॥८॥ शब्दार्थ -- - P / धम्म - धर्मास्तिकाय अधम्म - अधर्मास्तिकाय आगासा - आकाशास्तिकाय श्री नवतत्त्व प्रकरण तिय-तिय- तीन-तीन भेया - भेद वाले हैं । तहेव - तथैव (उसी प्रकार ) अद्धा काल य और www खंधा देस - देश परसा - प्रदेश परमाणु - परमाणु अजीव अजीव के - स्कन्ध - चउदसहा - चौदह भेद हैं 1 ४७
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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