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________________ पंचेन्द्रिय को क्रमश: चार, छह, सात, आठ, नौ और दस प्राण होते हैं ॥७॥ विशेष विवेचन प्राण : जिसके द्वारा जीव जीवित रहे अथवा जीवन धारण करे, वह प्राण कहलाता है। प्राण के मुख्य दो भेद है - द्रव्य प्राण तथा भाव प्राण । जिसके संयोग से जीव जीवित रहता है व वियोग से मृत्यु को प्राप्त होता है, वह द्रव्य प्राण है। ये द्रव्य प्राण १० होते है जो केवल जीव द्रव्य में ही होते है । प्राणों से ही संसारी जीव का जीवन है। इन प्राणों के अभाव में कोई भी जीव जीवित नहीं रह सकता । ये द्रव्य प्राण जीव के बाह्य लक्षण है, आत्मा के निजगुणों को भावप्राण कहते है। ये चार है - अनंतज्ञान-दर्शन-सुख एवं वीर्य। ५ इन्द्रिय प्राण : जीव तीन लोक के ऐश्वर्य से सम्पन्न है, अतः इसे इंद्र कहते है । इंद्र अर्थात् आत्मा, इसका जो चिन्ह है, उसे इन्द्रिय कहते है। इन्द्रियाँ ५ है - स्पर्शेन्द्रिय, रसेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय तथा श्रोतेन्द्रिय । ३ बल प्राण : मन, वचन, काया के निमित्त से होने वाले जीव के व्यापार को योग कहते है । इस शक्ति को ही बल प्राण कहा जाता है, जो कि तीन प्रकार का है - मनोबल प्राण, वचनबल प्राण, कायबल प्राण । श्वासोच्छ्वास प्राण : श्वासोच्छास के योग्य पुद्गल-वर्गणाओं को ग्रहण कर उन्हें श्वासोच्छास रूप परिणत करके उसके आलंबन से वायु को शरीर में ग्रहण करने और बाहर निकालने की जो शक्ति है, उसे श्वासोच्छ्वास प्राण कहा जाता है। आयुष्य प्राण : जीव जिसके उदय में एक शरीर में अमुक समय तक रहता है और जिसके अनुदय से उस शरीर से निकलता है, उसे आयुष्य प्राण कहते है। जीव को जीने में मुख्य कारण आयुष्य कर्म के पुद्गल ही है। आयुष्य कर्म के पुद्गल समाप्त होते ही जीव आहारादि अनेक साधनों द्वारा भी जीवित नहीं रह सकता है। . किस जीव को कितने प्राण : एकेन्द्रिय जीव को - १) स्पर्शनेन्द्रिय, २) काय बल, ३) श्वासोच्छास तथा ४) आयुष्य, ये चार प्राण होते है। ४६ तत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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