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________________ पर्याप्त अवस्था प्राप्त कराने वाले कर्म को पर्याप्त नाम कर्म तथा अपर्याप्त अवस्था प्राप्त कराने वाले कर्म को अपर्याप्त नाम कर्म कहते है । संसारी जीवों के प्राण गाथा पणिदिअ-त्ति बलूसा - साऊ दस पाण चउ छ सग अट्ठ । इग-दु-ति- चउरिंदीणं, असन्निसन्नीणं नव दस य ॥७॥ अन्वय पण - इंदिय त्ति बल ऊसास आऊ दस पाण इग-दु-ति- चउरिंदीणं असन्निसन्नीणं चउ-छ- सग-अट्ठ-नव य दस ॥७॥ संस्कृत पदानुवाद पंचेन्द्रिय-त्रिबलोच्छ्वासायूंषि दश प्राणाश्चत्वारः षट् सप्ताष्टौ । एक-द्वि-त्रि- चतुरिन्द्रियाणमसंज्ञि - संज्ञिनां नव दश च ॥७॥ शब्दार्थ पणिदिअ - पांच इन्द्रियाँ तीन बल त्ति बल ऊसास - श्वासोच्छ्वास. आऊ आयुष्य दस दश पाण - - - चउ ४ प्राण छ ६ प्राण सग ७ प्राण अट्ठ - ८ प्राण - प्राण हैं । ! इग एकेन्द्रिय को दु - बेइन्द्रिय को त्ति - तेइन्द्रिय को चउरिंदीणं - चउरिंद्रिय को असन्नि - असंज्ञी पंचेन्द्रिय को 2 सन्नीणं - संज्ञी पंचेन्द्रिय को नव- नौ प्राण ร दस य - और - दस प्राण भावार्थ पांच इन्द्रियाँ, तीन बल, श्वासोच्छ्वास और आयुष्य, ये दस प्राण हैं । एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय तथा संज्ञी श्री नवतत्त्व प्रकरण ४५
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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