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________________ उत्तर : उत्कृष्ट तीस सौ (तीन हजार) वर्ष, जघन्य अंतर्मुहूर्त । १०८९) ज्ञानावरणीय कर्म का कार्य क्या है ? उत्तर : ज्ञानावरणीय कर्म आंख पर बंधी पट्टी के समान है । जिसप्रकार आंख के आगे पट्टी बांधने से देखने में रुकावट होती है, वैसे ही ज्ञानावरणीय कर्म जानने में रुकाव/बाधा डालता है। १०९०) ज्ञानावरणीय कर्मबन्ध के हेतु क्या हैं ? उत्तर : (१) ज्ञान प्रत्यनीकता – ज्ञान या ज्ञानी से प्रतिकूलता रखना । (२) ज्ञान निह्नव - ज्ञान तथा ज्ञानदाता का अपलपन करना अर्थात् ज्ञानी को कहना कि ज्ञानी नहीं है। (३) ज्ञानान्तराय - ज्ञान की प्राप्ति में अन्तराय / विघ्न डालना । (४) ज्ञानप्रद्वेष – ज्ञान या ज्ञानी से द्वेष रखना। (५) ज्ञान आशातना - ज्ञान या ज्ञानी का तिरस्कार करना । (६) ज्ञान विसंवादन - ज्ञानी या ज्ञानी के वचनों में विरोध दिखाना । १०९१) ज्ञानावरणीय कर्म नष्ट होने पर आत्मा में कौनसा गुण प्रकट होता है ? उत्तर : अनंतज्ञान। १०९२) दर्शनावरणीय कर्म का क्या स्वभाव है ? उत्तर : दर्शनावरणीय कर्म प्रतिहारी के समान है। जैसे प्रतिहारी (द्वारपाल) राजा के दर्शन में रुकावट डालता है, वैसे ही दर्शनावरणीय कर्म देखने में बाधा डालता है। १०९३) दर्शनावरणीय कर्म की उत्कृष्ट तथा जघन्य स्थिति कितनी ? उत्तर : दर्शनावरणीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति ३० कोडाकोडी सागरोपम तथा जघन्य स्थिति एक अंतर्मुहूर्त है। १०९४) दर्शनावरणीय कर्म का उत्कृष्ट तथा जघन्य अबाधाकाल कितना ? उत्तर : उत्कृष्ट अबाधाकाल ३ हजार वर्ष तथा जघन्य एक अंतर्मुहूर्त्त । १०९५) दर्शनावरणीय कर्म बंध के क्या कारण है ? . उत्तर : (१) दर्शनप्रत्यनीकता - दर्शन या दर्शनी से प्रतिकूलता रखना । (२) दर्शननिह्नव - दर्शन या दर्शनदाता का अपलपन करना । ---------------------- श्री नवतत्त्व प्रकरण ३५०
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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