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________________ नवतत्त्व प्रकरण नवतत्वों के नाम गाथा जीवाऽजीवा पुण्णं, पावासव संवरो य निज्जरणा । बंधो मुक्खो य तहा, नव तत्ता हुंति नायव्वा ॥१॥ अन्वय जीव अजीवा पुण्णं पाव, आसव संवरो य निज्जरणा तहा बन्धो य मुक्खो, नवतत्ता नायव्वा हुंति ॥१॥ .. - संस्कृतपदानुवाद जीवाऽजीवो पुण्यं, पापाश्रवो संवस्श्च निर्जरणा । बन्धो मोक्षश्च तथा, नवतत्त्वानि भवन्ति ज्ञातव्यानि ॥१॥ शब्दार्थ जीव - जीव | बन्धो - बन्ध अजीवा - अजीव मुक्खो - मोक्ष पुण्णं - पुण्य य - और पाव - पाप तहा - तथा आसव - आश्रव नव - नौ संवरो - संवर । तत्ता - तत्त्व य - और . हुति - होते हैं निज्जरणा - निर्जरा नायव्वा - जानने योग्य भावार्थ जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, बंध और मोक्ष, ये नौ तत्त्व जानने योग्य है ॥१॥ विशेष विवेचन १. जीव - जीवति – 'प्राणान् धारयतीति जीवः' जो जीता है अर्थात् प्राणों - - श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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