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________________ जिणअजिण तित्थ ऽतित्था, गिहि अन्न सलिंगथीनरनपुंसा। पत्तेय सयंबुद्धा, बुद्धबोहिय इक्कणिक्का य ॥५५॥ जिणसिद्धा अरिहंता, अजिणसिद्धा य पुंडरिअपमुहा । गणहारि तित्थसिद्धा, अतित्थसिद्धा य मरुदेवी ॥५६॥ गिहिलिंगसिद्ध भरहो, वक्कलचिरी य अन्नलिंगम्मि । साहू सलिंगसिद्धा, थी सिद्धा चंदणापमुहा ॥५७॥ पुंसिद्धा गोयमाइ गांगेयाई नपुंसया सिद्धा । पत्तेय सयंबुद्धा, भणिया करकंडु-कविलाइ ॥५८॥ तह बुद्धबोहि गुरुबोहिया य, इगसमये इगसिद्धा य । इगसमयेऽवि अणेगा, सिद्धा ते ऽणेग सिद्धाय ॥५९॥ जइआइ होइ पुच्छा, जिणाण मग्गंमि उत्तरं तइया । इक्कस्स निगोयस्स, अणंतभागो य सिद्धि-गओ ॥६०॥ ॥ इति श्री नवतत्त्वमूलम् ॥ श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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