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________________ उसे उद्योत नामकर्म कहते है। चन्द्र-ग्रह-नक्षत्र-तारा, इन चारों ज्योतिष्क विमानों में स्थित पृथ्वीकायमय रत्नों के, देवों का उत्तर वैक्रिय शरीर, प्रकाश करने वाली औषधियाँ आदि के उद्योत नामकर्म का उदय होता ५२१) विहायोगति नामकर्म किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से जीव को ऊंट या गधे की तरह अशुभ चाल मिलती है अथवा गज, वृषभ तथा हंसादि की तरह शुभ चाल मिलती है, उसे विहायोगति नामकर्म कहते है। ५२२ ) निर्माण नामकर्म किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से शरीर के अवयवों की रचना नियत स्थान पर निर्मित होती है, उसे निर्माण नामकर्म कहते है । ५२३) त्रस दशक नामकर्म किसे कहते है ? । उत्तर : जिस कर्म के उदय से त्रसादि दश प्रकृतियाँ प्राप्त होती है, उसे त्रसदशक नामकर्म कहते है। ५२४) त्रसदशक में दश प्रकृतियाँ कौन-कौन सी हैं ? उत्तर : १. त्रस, २. बादर, ३. पर्याप्त, ४. प्रत्येक, ५. स्थिर, ६. शुभ, ७. सुभग, ८. सुस्वर, ९. आदेय, १०. यश । ५२५) त्रस नामकर्म किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से जीव इच्छापूर्वक गमनागमन कर सके, स्वतंत्रता पूर्वक हलन चलन कर सके, उसे त्रसनामकर्म कहते है। ५२६) बादर नामकर्म किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से जीव को ऐसा शरीर मिले जो आँखों से या यंत्र से देखा जा सके, उसे बादर नामकर्म कहते है । ५२७) पर्याप्त नामकर्म किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से जीव स्वयोग्य पर्याप्तियों को पूर्ण करे, ___उसे पर्याप्त नामकर्म कहते है। ५२८) प्रत्येक नामकर्म किसे कहते है ? ------------- श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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