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________________ उत्तर : जिस कर्म के उदय से प्रत्येक जीव को भिन्न-भिन्न शरीर की प्राप्ति हो, उसे प्रत्येक नामकर्म कहते है। ५२९) स्थिर नामकर्म किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से जीव को शरीर में हड्डियाँ, दांत आदि स्थिर मिले, ____ उसे स्थिर नामकर्म कहते है। ५३०) शुभ नामकर्म किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से जीव को नाभि के उपर के अवयव शुभ, सुंदर प्राप्त हो, उसे शुभ नामकर्म कहते है। ५३१) सौभाग्य नामकर्म किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से जीव दूसरों पर उपकार न करने पर भी उन्हें प्रिय लगे, उसे सौभाग्य नामकर्म कहते है। ५३२) सुस्वर नामकर्म किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से जीव की आवाज कोयल की तरह मधुर हो, उसे सुस्वर नामकर्म कहते है। ५३३) आदेय नामकर्म किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से जीव का वचन अयुक्तियुक्त तथा तर्क रहित होने पर भी ग्राह्य तथा मान्य हो, उसे आदेय नामकर्म कहते है। ५३४) यश नामकर्म किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से जीव लोक में प्रशंसा का पात्र बने, उसका ___ गुणगान हो, उसे यश नामकर्म कहते है। ५३५) आयुष्य कर्म किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से संबंधित भव में जीव अपने नियत काल तक जकडा हुआ रहे, उसे आयुष्य कर्म कहते है। ५३६) आयुष्य कर्म के कितने भेद हैं ? उत्तर : आयुष्य कर्म के ४ भेद है : १. नरक आयुष्य, २. तिर्यंच आयुष्य, ३. मनुष्य आयुष्य, ४. देव आयुष्य । ५३७) तीर्थंकर नामकर्म किसे कहते है ? - - - - - - - - - - - - - श्री नवतत्त्व प्रकरण २५०
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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