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________________ ५०८) वज्रऋषभनाराच संघयण किसे कहते है ? उत्तर : वज्र = कील, ऋषभ - पट्टा, नाराच - मर्कट बंध अर्थात् जिसमें दोनों ओर से मर्कट बंध द्वारा जुडी हुई दो हड्डियों पर तीसरा हड्डी का पट्टा हो, इन तीनों हड्डियों को भेदने वाली वज्र नामक हड्डी की कील हो, उसे वज्रऋषभनाराच संघयण कहते हैं। दोनों हाथों से दोनों हाथों की कलाईयाँ परस्पर पकडे वह मर्कटबंध कहलाता है। ५०९) संस्थान नामकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से जीव को शरीर की आकृति (रचना) शुभाशुभ मिलती है, उसे संस्थान नामकर्म कहते हैं। ५१०) समचतुरस्र संस्थान नामकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : सम = समान, चतुः = चार, अस्र = कोण । जिस शरीर की आकृति में चार कोण (कोने) समान हो, वह समचतुरस्त्र संस्थान है। चार कोने पद्मासन लगाकर बैठे हुए मनुष्य के (१) बांये घुटने से दांया कंधा (२) दाये घुटने से बांया कंधा (३) दोनों घुटनों के बीच का अंतर (४) ललाट से आसन के मध्य का अंतर एक समान होता है, इस शरीर की सुन्दरता अद्भुत होती है। यह समचतुरस्त्र संस्थान पुण्य उदय से प्राप्त होता है । तीर्थंकर तथा देवताओं के समचतुरस्त्र संस्थान ही. होता है। ५११) वर्णचतुष्क नामकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से जीव को वर्ण, गंध, रस तथा स्पर्श मिलते हैं, उसे वर्णचतुष्क नामकर्म कहते हैं । ५१२) शुभवर्ण क्या है ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से जीव के शरीर को हंस आदि के समान शुक्ल आदि वर्ण की प्राप्ति होती है, वह शुभवर्ण नामकर्म कहलाता है। शुभ वर्ण तीन हैं - (१) लाल (२) पीला (३) श्वेत । ५१३) शुभगंध नामकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से जीव के शरीर में कमल, गुलाब के फूल या ___ चंदन जैसी खुश्बू आती है, उसे शुभगंध नामकर्म कहते हैं । श्री नवतत्त्व प्रकरण २४७
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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