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________________ ५०१) आहारक शरीर किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से आहारक लब्धियुक्त चौदह पूर्वधारी मुनि अपनी शंका का समाधान करने अथवा तीर्थंकर की ऋद्धि देखने की अभिलाषा से पुद्गलों का आहरण कर स्वयं एक हाथ का शरीर आत्म प्रदेशों से व्याप्त कर तीर्थंकर भगवान के पास भेजते हैं, उसे आहारक शरीर कहते है । यह शरीर इतना सूक्ष्म होता है कि चर्म चक्षुओं से दिखायी नहीं देता हैं। ५०२ ) तैजस शरीर किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से शरीर में आहार का पाचन होता है, उन तैजस पुद्गलों के समूह से निर्मित शरीर को तैजस शरीर कहते है । ५०३) कार्मण शरीर किसे कहते है ? उत्तर : कार्मण वर्गणाओं से बना हुआ, आठ कर्मों का समूह रूप कार्मण शरीर ५०४) अंगोपांग नामकर्म किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से अंग, उपांग तथा अंगोपांग की प्राप्ति होती है, उसे अंगोपांग नामकर्म कहते है। ५०५) औदारिक, वैक्रिय तथा आहारक अंगोपांग नामकर्म से क्या आशय है? उत्तर : जिस कर्म के उदय से जीव के औदारिक, वैक्रिय, आहारक शरीर को अंग-उपांग तथा अंगोपांग मिले, उसे औदारिक, वैक्रिय, आहारक अंगोपांग नामकर्म कहते है। ५०६) अंग, उपांग तथा अंगोपांग किसे कहते हैं ? उत्तर : दो हाथ, दो पाँव, सिर, पेट, पीठ तथा हृदय, ये आठ अंग हैं। अंगुलियाँ उपांग है तथा रेखाएं आदि अंगोपांग हैं । औदारिक, वैक्रिय तथा आहारक इन तीन शरीरों के ही अंगोपांग होते हैं। . ५०७) संघयण (संहनन) नामकर्म किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से जीव को हड्डियों की विशिष्ट रचना प्राप्त होती है, उसे संघयण नामकर्म कहते हैं। २४६ श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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