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________________ ४९४) देवगति व देवानुपूर्वी (देवद्विक) किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से जीव को देवगति व देवानुपूर्वी मिलती है। ४९५) द्विक, त्रिक, चतुष्क या दशक से क्या तात्पर्य है ? उत्तर : द्विक, त्रिक, चतुष्क, दशक आदि संज्ञाए हैं । द्विक से दो, त्रिक से तीन यावत् दशक से दश प्रकृतियों का ग्रहण करना चाहिए । नरक द्विक से नरकगति, नरकानुपूर्वी अथवा नरक त्रिक से नरकगति, नरकानुपूर्वी व नरकायुष्य इन तीन प्रकृतियों का ग्रहण होता है। इसी प्रकार त्रस दशक से त्रसादि १० प्रकृतियों का ग्रहण होता है । कर्मशास्त्र में इस प्रकार की संज्ञाएँ प्रचलित हैं। ४९६) जाति नामकर्म किसे कहते है ? उत्तर : जो कर्म एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय तथा पंचेन्द्रिय जाति प्रदान करता है, उसे जातिनामकर्म कहते है। ४९७ ) जाति की परिभाषा लिखो । उत्तर : जगत के जीवों का इन्द्रियों द्वारा किया गया पृथक्करण जाति कहलाता ४९८) शरीर नामकर्म किसे कहते है ? उत्तर : जो शीर्ण-विशीर्ण होता है, उसे शरीर कहते है। शरीर नामकर्म के उदय से जीव को ५ प्रकार के शरीर प्राप्त होते हैं । ४९९) औदारिक शरीर किसे कहते है ? उत्तर : उदार, स्थूल, औदारिक वर्गणाओं से बना हुआ तथा मोक्ष प्राप्ति में खास उपयोगी औदारिक शरीर कहलाता है। मनुष्य व तिर्यञ्च का शरीर औदारिक है। ५०० ) वैक्रिय शरीर किसे कहते है ? उत्तर : जिसमें छोटे-बड़े, एक - अनेक, नाना प्रकार के रूप बनाने की शक्ति हो, जो वैक्रिय वर्गणाओं से बना हुआ हो, जिसमें हाड, मांस न हो, मरने के बाद कपूर की तरह बिखर जाय, उसे वैक्रिय शरीर कहते है। देव तथा नारक जीवों को वैक्रिय शरीर जन्म से प्राप्त होता है । श्री नवतत्त्व प्रकरण २४५
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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