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________________ उत्तर : उपरोक्त ६ तथा घ्राणेन्द्रिय अधिक होने से ७ प्राण होते हैं । २४७ ) चतुरिन्द्रिय जीवों के कितने प्राण होते हैं ? उत्तर : चक्षुरिन्द्रिय व उपरोक्त ७ सहित कुल ८ प्राण होते हैं । २४८ ) असंज्ञी तथा संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के कितने प्राण होते है ? उत्तर : असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों को श्रोत्रेन्द्रिय अधिक होने से ९ तथा संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों को मनोबल सहित कुल १० प्राण होते हैं । २४९ ) एकेन्द्रिय तथा द्वीन्द्रिय जीवों के क्रमशः एक तथा दो ही इन्द्रियाँ (स्पर्श, रस) होने से श्वासोच्छ्वास लेना कैसे संभव है ? उत्तर : तीन तथा उससे अधिक इन्द्रिय वाले जीवों को जो श्वासोच्छ्वास नासिका (घ्राणेन्द्रिय) द्वारा ग्रहण होता है, वह दिखाई देने वाला बाह्य श्वासोच्छ्वास है परंतु इसका ग्रहण, प्रयत्न तथा परिणमन तो सर्व आत्मप्रदेशों से होता है । इसे आभ्यंतर श्वासोच्छ्वास भी कहते है । जिन एकेन्द्रिय तथा द्वीन्द्रिय जीवों के नासिका नहीं है, वे सर्व शरीर प्रदेशों से श्वासोच्छ्वास के योग्य पुद्गल ग्रहणकर परिणमन कर विसर्जित करते हैं । इन जीवों का श्वासोच्छ्वास अव्यक्त है, जबकि नासिकावाले जीवों का श्वासोच्छ्वास व्यक्त-अव्यक्त दोनों प्रकार का होता है । २५० ) अपर्याप्त जीवों के कितने प्राण होते हैं ? उत्तर : अपर्याप्त को उत्कृष्ट से ७ तथा जघन्य से तीन प्राण होते हैं । २५१) अपर्याप्ता एकेन्द्रिय जीवों में कितने प्राण होते हैं ? उत्तर : अपर्याप्ता एकेन्द्रिय जीवों में तीन प्राण होते हैं - १. आयुष्य, २. काय बल, ३. स्पर्शनेन्द्रिय तथा श्वासोच्छ्वास प्राण अधूरा ही होता है । २५२ ) पर्याप्ता एकेन्द्रिय जीवों में कितने प्राण होते हैं ? उत्तर : ४ प्राण होते हैं - १. स्पर्शनेन्द्रिय, २. कायबल, ३. श्वासोच्छ्वास, ४. आयुष्य । २५३) अपर्याप्ता बेइन्द्रिय जीवों में कितने प्राण होते हैं ? उत्तर : १. आयुष्य, २. कायबल, ३. स्पर्शनेन्द्रिय, ४. रसनेन्द्रिय, ये ४ प्राण होते हैं। पांचवाँ प्राण अपूर्ण होता है । २५४) पर्याप्ता बेइन्द्रिय जीवों में कितने प्राण होते हैं ? श्री नवतत्त्व प्रकरण १९९
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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