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________________ २. चरम शरीरी - अंतिम शरीरी अर्थात् उसी भव में मोक्ष जाने वाले, आगे संसार में जन्म नहीं लेने वाले । ३. उत्तम पुरुष - अर्थात् त्रेसठशलाका पुरुष (२४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ९ वासुदेव, ९ बलदेव तथा ९ प्रतिवासुदेव) ४. असंख्येयवर्षायुषी असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले युगलिक तिर्यञ्च तथा युगलिक मनुष्य । शेष जीवों के अपवर्तनीय और अनपर्वतनीय, दोनों प्रकार के आयुष्य होते हैं । १९८ - २४१ ) अनपवर्तनीय आयुष्य के कितने भेद हैं ? उत्तर : अनपवर्तनीय आयुष्य के दो भेद हैं - १. निरूपक्रम, २. सोपक्रम । २४२) निरूपक्रम आयुष्य किसे कहते है ? उत्तर : मृत्युकाल में बिना किसी निमित्त के सहज और आत्मिक शांति व समाधिपूर्वक पूर्ण होने वाला तीर्थंकरादि का आयुष्य निरूपक्रम आयुष्य कहलाता है । २४३ ) सोपक्रम आयुष्य किसे कहते है ? I उत्तर : मृत्युकाल में निमित्तपूर्वक पूर्ण होनेवाला आयुष्य सोपक्रम आयुष्य कहलाता है । जैसे गजकुसुमाल व मेतार्य मुनि का आयुष्य । ये चरम शरीरी जीव थे । अतः अनपवर्तनीय आयुष्य का बंध था पर वह आयुष्य सोपक्रमिक होने से उन्हें मरणांत उपसर्ग हुआ और उसी वेदना को सहते-सहते आयुष्य पूर्णाहुति के साथ उन्हें केवलज्ञान व निर्वाण प्राप्त हो गया । अपवर्तनीय आयुष्य सोपक्रमिक ही होता है । २४४) एकेन्द्रिय जीवों के कितने प्राण होते हैं ? ३. उत्तर : एकेन्द्रिय जीवों के ४ प्राण होते हैं - १. स्पर्शेन्द्रिय, २. कायबल, श्वासोच्छ्वास, ४. आयुष्य । २४५) द्वीन्द्रिय जीवों के कितने प्राण होते हैं ? उत्तर : द्वीन्द्रिय जीवों के ६ प्राण होते हैं - १. स्पर्शेन्द्रिय, २. रसनेन्द्रिय, ३. कायबल, ४. वचनबल, ५. श्वासोच्छ्वास, ६. आयुष्य । २४६) त्रीन्द्रिय जीवों के कितने प्राण होते हैं ? श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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