SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अन्य अपेक्षा से - १. अपवर्तनीय, २. अनपवर्तनीय । २३४) द्रव्य आयुष्य किसे कहते है ? उत्तर : आयुष्य कर्म के पुद्गल द्रव्य आयुष्य है । २३५) काल आयुष्य किसे कहते है ? उत्तर : उन पुद्गलों द्वारा जीव जितने समय तक अमुक एक भव में स्थित ___रहता है, उसका नाम काल आयुष्य है। २३६) अपवर्तनीय आयुष्य किसे कहते है ? उत्तर : आयुष्य कर्म के बंधे हुए पुद्गल किसी निमित्त अथवा शस्त्रादि के आघात आदि को प्राप्त कर शीघ्र क्षीण हो जाय अर्थात् अकाल मृत्यु की प्राप्ति होना, अपवर्तनीय आयुष्य है। २३७) अनपवर्तनीय आयुष्य किसे कहते है ? उत्तर : बंधे हुए आयुष्य में किसी प्रकार का परिवर्तन संभव न हो, जितना बांधा हो, उतना अवश्यमेव भोगना पडे, उसे अनपवर्तनीय आयुष्य कहते है। २३८) द्रव्य तथा काल आयुष्य को भोगे बिना क्या जीव की मृत्यु संभव है? उत्तर : इन दोनों में से जीव ने द्रव्य आयुष्य यदि अपर्वतनीय बांधा है तो द्रव्य आयुष्य अवश्य भोगता है परंतु काल आयुष्य पूर्ण करता है अथवा नहीं भी करता है । अपूर्ण काल में मृत्यु संभव है पर द्रव्य आयुष्य तो पूर्ण भोगना ही पड़ता है। और यदि द्रव्य आयुष्य अनपवर्तनीय बांधा है तो द्रव्य और काल, दोनों आयुष्य अवश्य भोगता है। २३९) अकाल मृत्यु होने पर द्रव्य आयुष्य को पूर्ण भोगना कैसे संभव है ? उत्तर : द्रव्य आयुष्य के पुद्गल चूंकि अपवर्तनीय अर्थात् अकस्मात् किसी आघात से शीघ्र क्षय के स्वभाव वाले होने से अंतिम समय में एक ही साथ भोग लिये जाते है। २४०) अनपवर्तनीय आयुष्य किन-किन जीवों को प्राप्त होता है ? उत्तर : ४ प्रकार के जीवों को अनपवर्तनीय आयुष्य की प्राप्ति होती है - १. उपपात जन्म वाले - समस्त देव तथा नारकी जीव । ----- -- ---------- श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy