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________________ उत्तर : आत्मा की शक्ति या पराक्रम को वीर्य कहते है । २१४) वीर्य कितने प्रकार का होता हैं ? उत्तर : वीर्य दो प्रकार का होता है - १. लब्धि वीर्य, २. करण वीर्य । २१५) लब्धि वीर्य किसे कहते हैं ? उत्तर : ज्ञान-दर्शन आदि के उपयोग में प्रवर्तित आत्मा का स्वाभाविक वीर्य लब्धि वीर्य कहलाता है। २१६) करण वीर्य किसे कहते हैं ? उत्तर : मन-वचन-काया के आलंबन से प्रवर्तित होता वीर्य करण वीर्य कहलाता है। २१७) उपयोग किसे कहते हैं ? उत्तर : जिसके द्वारा ज्ञान तथा दर्शन गुण की प्रवृत्ति होती है, उसे उपयोग कहते २१८) जीव के लक्षण रूप ज्ञान व दर्शन में उपयोग का समावेश हो जाता हैं, फिर उपयोग को अलग से जीव का लक्षण बताने की क्या आवश्यकता हैं ? उत्तर : परिभाषानुसार यदि देखा जाये तो ज्ञान, दर्शन तथा उपयोग में कोई भिन्नता नहीं हैं, परन्तु आंतरिक दृष्टि से देखा जाय तो हमे भिन्नता नजर आयेगी, क्योंकि किसी भी वस्तु के विशेष धर्म को जानने की आत्मा में रही हुई शक्ति, ज्ञान तथा सामान्य धर्म को जानने की आत्मा में रही हुई शक्ति, दर्शन, इन शक्तियों का व्यापार, इनका इस्तेमाल और उपयोग कहलाता हैं। २१९) सूक्ष्म अपर्याप्त एकेन्द्रियादि जीवों में ज्ञानादि लक्षण कैसे संभव हैं ? उत्तर : सूक्ष्म अपर्याप्त (निगोद) जीव को उत्पत्ति के प्रथम समय में भी मति तथा श्रुतज्ञान का अनन्तवाँ भाग उद्घाटित रहता है और प्रथम समय में भी वह श्रुतज्ञान एक पर्याय वाला नहीं अपितु अनेक पर्याय वाला होता हैं । वह मति तथा श्रुतज्ञान उस जीव में अस्पष्ट और वैसे ही आवृत्त हैं, जैसे मूर्छागत मनुष्य में ज्ञान । इसलिये उसमें ज्ञान लक्षण अवश्य होता हैं । ज्ञान की तरह दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य तथा उपयोग आदि १९४ श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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