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________________ १. जीव तत्त्व का विवेचन ७६) संसारी जीवों के विभिन्न अपेक्षाओं से कौन-कौन से भेद होते हैं ? उत्तर : संसारी जीवों के विभिन्न अपेक्षाओं से ६ प्रकार के भेद नवतत्त्व में __उल्लिखित हैं। ७७) छह प्रकार के भेदों को स्पष्ट कीजिए ? उत्तर : १. समस्त जीवों का मति व श्रुतज्ञान का अनन्तवां भाग प्रकट होने से समस्त जीव चैतन्यलक्षण से युक्त है। इस चेतना लक्षण द्वारा सभी जीव एक प्रकार के है। २. संसारी जीवों के त्रस तथा स्थावर ये दो भेद होने से जीव २ प्रकार के है। त्रस व स्थावर इन दो भेदों में सभी संसारी जीवों का समावेश हो जाता है। ३. वेद की अपेक्षा से समस्त संसारी जीव ३ प्रकार के हैं। कोई जीव स्त्रीवेद वाला है, कोई पुरुषवेद वाला है तो कोई नपुंसक वेद वाला है। इन तीनों वेद में समस्त संसारी जीव समाविष्ट हो जाते हैं। ४. चार गतियों की अपेक्षा से संसारी जीव के '४ प्रकार है । नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य तथा देव, इन चार गतियों से अलग किसी जीव का अस्तित्व नहीं है। ५. इन्द्रियों की अपेक्षा से संसारी जीवों के ५ भेद हैं । एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय तथा पंचेन्द्रिय, इन पांच भेदों में संसार की समस्त जीव राशि समाविष्ट है। ६. षट्काय की अपेक्षा से संसारी जीवों के ६ प्रकार हैं । पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, त्रसकाय, इन षट्काय में समस्त संसारी जीव समाहित हो जाते हैं । ७८) त्रस किसे कहते है ? उत्तर : त्रस नाम कर्म के उदय से जो जीव सर्दी-गर्मी से बचने के लिये गमनागमन कर सके, उसे त्रस कहते है। ७९) स्थावर किसे कहते है ? ------- श्री नवतत्त्व प्रकरण १७६ १७५ - -
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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