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________________ करने वाला व विभिन्न देह धारण करने वाला होने से जीव रूपी भी ६७) अजीव तत्त्व को रूपी व अरूपी दोनों क्यों कहा? उत्तर : अजीव तत्त्व के भेदों में पुद्गल के ४ भेद रूपी हैं, इसलिये रूपी तथा बाकी के १० भेद अरूपी हैं, अतः अरूपी कहा है । ६८) नवतत्त्वों के कुल कितने भेद हैं ? उत्तर : नवतत्त्वों के कुल २७६ भेद इस प्रकार हैं - जीव-१४, अजीव-१४, पुण्य-४२, पाप-८२, आश्रव-४२, संवर-५७, निर्जरा-१२, बंध-४, मोक्ष-९। ६९) नवतत्त्वों के २७६ भेदों में से हेय के भेद कितने हैं ? उत्तर : हेय के १७० भेद हैं - पुण्य-४२, पाप-८२, आश्रव-४२ तथा बंध-४। ७०) नवतत्त्वों २७६ भेदों में से उपादेय के भेद कितने हैं ? उत्तर : उपादेय के भेद १२० हैं - पुण्य-४२, संवर-५७, निर्जरा-१२, मोक्ष-९ । ७१) नवतत्त्वों के २७६ भेदों में से ज्ञेय के भेद कितने हैं ? उत्तर : २८ भेद ज्ञेय के हैं - जीव-१४, अजीव-१४ । ७२) नवतत्त्व के २७६ भेदों में से जीव के भेद कितने हैं ? उत्तर : जीव के भेद ९२ है - जीव-१४, संवर-५७, निर्जरा-१२, मोक्ष-९ । ७३) नवतत्त्व के २७६ भेदों में से अजीव के भेद कितने हैं ? उत्तर : १८४ भेद अजीव के हैं - अजीव-१४, पुण्य-४२, पाप-८२, आश्रव ४२, बंध-४ । ७४) नवतत्त्व के २७६ भेदों में से रुपी के भेद कितने हैं ? । उत्तर : रुपी के १८८ भेद हैं - जीव-१४, अजीव-४, पुण्य-४२, पाप-८२, ___ आश्रव-४२, बंध-४। ७५) नवतत्त्व के २७६ भेदों में से अरुपी के कितने भेद हैं ? उत्तर : अरुपी के १०२ भेद हैं - जीव-१४, अजीव-१०, संवर-५७, निर्जरा१२, मोक्ष-९। - - - - - - श्री नवतत्त्व प्रकरण - - - - - - - - - - - - - - - - - - १७४
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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