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________________ प्रस्तावना. खुलासा अर्थ- हिंदीमें किया गया है । हाँ, अनेक भावोंको उन्होंने संस्कृत टीकाकी अपेक्षा भी अधिक अच्छी तरह स्पष्ट किय है । प्रत्येक श्लोकके अर्थके अंतमें भावार्थ भी दिया है। भावार्थमें उपर्युक्त अर्थ दुहरा दिया गया है जिससे कि पढनेवालोंको सुगमता पडे। - पं. टोडरमलजीने महत्वपूर्ण ‘गोमटसार' ग्रंथकी भी हिंदी टीका संस्कृत टीकाके आधारसे की है । और भी कई टीकाटिप्पणियां उन्होंने की हैं। 'मोक्षमार्गप्रकाश' नामका एक हिंदी स्वतंत्र ग्रंथ भी उन्होंने लिखा है । ये सव ग्रंथ जयपुरकी प्रान्तीय भाषा ( ढूंढारी )में लिखे गये हैं। टोडरमलजी जैनहिंदी-ग्रंथों के कर्ताओंमेंसे -बसे अच्छे माने जाते हैं । जब कि ऐसे विद्वान्का लिखा हुआ अर्थ मौजूद था तो नवीन अर्थ लिखनेकी आवश्यकता नहीं थी। परंतु, जैनग्रंथकार्यालयके मालिक पं. नाथूरामजी प्रेमी इस बातके प्रेमी हैं कि ग्रंथोंके समालोचन, पर्यालोचन, संस्कार, प्रतिसंस्कार आदि प्रचलित मातृभाषाओंमें होते हैं । ऐसा करनेसे वर्तमान हिन्दीभाषाकी उन्नति में सहायता होती है और वर्तमान हिन्दीके द्वारा सुगमतया सामान्य जनोंको धर्मज्ञान भी प्राप्त होसकता है । पं. टोडरमलजीकी भाषाको समझनेमें आज सामान्य जनोंको दिक्कत होती है। क्योंकि, उनकी भाषा आजकल की प्रचलित साहित्यभाषा नहीं है । अत एव इस ग्रंथकी यह नवीन हिन्दी टीका लिखने की आवश्यकता समझी गई । लिखते समय हमने उपर्युक्त संस्कृत व हिंदी दोनो व्याख्यान देखे हैं। हम नहीं कह सकते कि पहिली भाषा टीकामें कई जगह छोटी, बड़ी भूलें क्यों रह गई हैं ? कई स्थलों में तो एमा मालूम होता है कि मंस्कृत शब्दोंका भाव टोडरमलज की समझमें ही नहीं आया । उदाहरणार्थ, २६ ८ वें श्लोकको देखियेः 'इति कतिपयवाचां गोच कृित्य कृत्यम् ' अर्थत् इस प्र. कार यह · आत्मानुशासन' नाम ग्रंथ मैंने कतिपय वचनोंमें संग्रह
SR No.022323
Book TitleAatmanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1916
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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