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________________ प्रस्तावना यह ग्रंथ आध्यात्मिक होनेसे ग्रंथकारने जहातक बना है बहुत ही सरल इसे लिखा है । जहाँपर किसी अनुमानादि कठिन विषयकी बहुत ही आवश्यकता आपडी है वहींपर उस विषयकी विद्वता दिखाई पडती है। इनकी विद्याका परिचय देनेवाले और भी कई ग्रंथ हैं । इन्हीकी कृतिमेंसे एक जिनदत्त चरित्र नामका काव्य भी है। उसमें देखिये कि साहित्य आदि विषयों की बातें कितनी है ? इसे तो जो ग्रंथकारने इतना सरल बनाया है, यही उनकी विद्याकेलिये भूषण है। इसीलिये इसमें प्रसादगुणकी भरमार भी है। ग्रंथके टीकाकारोंका परिचयःआत्मानुशासनका छोटासा संस्कृत व्याख्यान (टीका) श्री. प्रभाचन्द्राचार्यने किया है जिन्होंने कि 'रत्नकरण्डक' का व्याख्यान लिखा है। व्याख्यानके अंतमें उन्होंने एक पद्य लिखा है। वह यह है किः मोक्षोपायमनल्पपुण्यममलज्ञानोदयं निर्मलं, भव्यार्थ परमं प्रभेन्दुकृतिना व्यक्तः प्रसन्नैः पदैः। व्याख्यातं वरमात्मशासनमिदं व्यामोहविच्छेदतः, सूक्तार्थेषु कृतादरैरहरहश्चेतस्यलं चिन्त्यताम् ।। भावार्थ:-आस्मानुशासनका यह सरल व्याख्यान प्रभाचंद्र कृतिने किया है । सूक्तियों के अर्थी इसका मनन करें। . इस व्याख्यान के प्रारंभमें लिखा है कि 'वृहद्धर्मप्र तुलॊकसेनस्य विषयव्यामुग्धबुद्धेः संबोधनध्याजेन सर्वसत्त्वोपकारकं सन्मार्गमुपदर्शवितु. कामो गुण भद्रदेवी लक्ष्मी त्याद्याह । अर्थात्, उच्च धर्म ( मुनिधर्म ) की अपेक्षा जो भाई लोकसेन वह विषयोंमें माहेत हुआ था। उसके संबोधनका निमित्त पाकर श्री गुणभद्र स्वामी सर्व प्राणिशेकेलिये उपकारक ऐसे सन्मार्गको दिखानेकी अभिलाषासे यह ग्रंथ शुरू करते हैं । इसी टीकाके सहारेसे श्रीयुत पं. टोडरमलजीने हिंदी टीका की है। जो इस संस्कृत टीकामें है उसमें से प्राय कुछ भी न छाडकर उसीका
SR No.022323
Book TitleAatmanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1916
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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