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________________ जिनका कि इस दिगम्बर समाजमें आज भी वैसाही आदर होता है जैसा कि प्रसिद्ध विद्वान् टोडरमलजीका होता है। पं० टोडरमलजीने थोड़े ही समयमें अपनी प्रतिभा शालिनी अलौकि बुद्धि से इस दि. जैन समाजका वह कल्याण किया है कि जिसका प्रतिफल स्वरूप यशोगान यह समाज आज तक गा रहा है। उसी प्रकार टोडरमलजीके समकक्ष पंडित जयचंद्रजीका भी समाजके ऊपर वैसाही उपकार है इसीसे समाजकी दृष्टिमें ये भी मान्य हैं । पंडित जयचंद्रजीका पांडित्य हरएक विषयमें अपूर्व ही था यह उनकी ग्रंथरूप कृति से पाठकों को स्वयमेव ही विदितहो सकता है । तथा ये निरपेक्ष परोपकाररत ऐसे विद्वान थे कि जिनकी बरावरीका उस समय जयपुर भरमें किसी धर्मका भी वैसा कोई विद्वान् नहीं था। तथा भाषा सर्वार्थसिद्धिकी प्रशस्ति पढ़ने से मालूमहोता है कि आपके पुत्र नंदलालजी भी बड़े विद्वान थे। उनकी प्रेरणासे तथा भव्य जनोंकी विशेष प्रेरणा से ही उन्होंने सर्वार्थसिद्धि वगैरः ग्रंथोंकी देशभाषामय वचनिका लिखी है । आपके विषयमें वृद्ध पुरुषों द्वारा आज तक भी एक प्रसिद्ध कहावत सुनने में आती है कि एक समय जयपुर नगरमें शास्त्रार्थी अन्यधर्मी एक वड़ा विद्वान् जयपुरनगरके विद्वानोंको शास्त्रार्थ में जीतनेकी इच्छा से आया था उस समय उस विद्वान् से शास्त्रार्थ करनेके लिये जयपुरनिवासी कोई भी विद्वान् उसके सन्मुख नहीं गया, ऐसी हालतमें नगरके विद्वानोंकी तथा नगरकी विद्व. त्ताके विना अकीर्ति न हो जाय इस हेतु से तथा राज्यकी कीर्ति वांच्छक नगरके विद्वान् पंच तथा राज्य कर्मचारी वर्गने पं. जयचंद्रजी छावड़ासे जाकर सविनय निवेदन किया था कि इस विद्वान्को शास्त्रार्थ में आपही जीत सकते हैं अतः इस नगरकी प्रतिष्ठा आप परही निर्भर है इसलिये शास्त्रार्थ करनेके निमित्त आप पधारे अन्यथा नगरकी बड़ीबदनामी होगी कि बड़े बड़े पंडितोंकी खानि इस विशाल नगरको एक परदेशी विद्वान् जीतगया । इस बातको सुनकर पंडित जयचंद्रजी छावड़ाने जवाब दिया कि मैं तो जयपराजयकी अपेक्षासे शास्त्रार्थ करने किसीसे जाता नहीं फिर भी आपलोगोंका ऐसाही आग्रह है तो मेरे इस पुत्र नंदलालको ले जाइये यह उससे शास्त्रार्थ कर सकेगा। इस पर राजी हो कर सब लोग पं. नंदलालजीको ले गये और पं. नंदलालजीने शास्त्रार्थ कर विदेशी विद्वान्को पराजित किया उसके प्रतिफल राज्य तथा नगरपंचकी तरफ से पं. नंदनलालजी को कुछ उपाधि मिली थी उसके विषयमें पं. जयचंद्र. जीने अवश्य कर्तव्य में उपकार मान कर उसका प्रतिफल स्वरूप ले ना मानों
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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