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________________ अष्टपाहुडमें पाहुडकी भाषावचनिका । ४५ अविनाशी मोक्ष ताहि साधै है । इहां गाथामैं सूत्र ऐसा विशेष्य पदन कह्या तौऊ विशेषणनिकी सामर्थ्यतें लिया है। ___ भावार्थ-जो अरहंत सर्वज्ञ करि भाषित है अर गणधर देवनिकार अक्षर पद वाक्यमयी गूंथ्या है अर सूत्रके अर्थका जाननेकाही है अर्थ प्रयोजन जामैं ऐसा सूत्र करि मुनि परमार्थ जो मोक्ष ताहि साधै है । अन्य जे अक्षपाद जैमिनि कपिल सुगत आदि छद्मस्थनिकरि रचे कल्पित सूत्र हैं तिनिकरि परमार्थकी सिद्धि नांही है, ऐसा आशय जाननां ॥१॥ ___ आनें कहै है जो ऐसा सूत्रका अर्थ आचार्यनिकी परंपरा करि वत्त तिसकू जानि मोक्षमार्ग• साधै है सो भव्य है;गाथा-सुत्तम्मि जं सुदि आइरियपरंपरेण मग्गेण । ___णाऊण दुविह सुत्तं वट्टइ सिवमग्ग जो भव्वो ॥२॥ संस्कृत-सूत्रे यत् सुदृष्टं आचार्यपरंपरेण मार्गेण । ज्ञात्वा द्विविधं सूत्रं वर्तते शिवमार्गे यः भव्यः॥२॥ __ अर्थ-जो सर्वज्ञभाषित सूत्रविषै जो किछू भलै प्रकार कह्या है. ताकू आचार्यनिकी परंपरारूप मार्ग करि दोय प्रकार सूत्रकू शब्द थकी अर्थ थकी जानि अर मोक्षमार्गविर्षे प्रवत्तै है सो भव्यजीव है मोक्ष. पावने योग्य है। ___ भावार्थ--इहां कोई कहै-अरहंतका भाष्या अर गणधर देवनिका गूंथ्या सूत्र तौ द्वादशांगरूप हैं ते तौ अवार कालमैं दीखें नाही तब परमार्थरूप मोक्षमार्ग कैसैं सधै, ताका समाधानकू यह गाथा हैजो अरहंतभाषित गणधर गूंथित सूत्रमैं जो उपदेश है तिसकू आचार्यनिकी परंपराकरि जानिये है, तिसकू शब्द अर्थ करि जानि जो मोक्षमार्ग
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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