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________________ श्रीः अथ सूत्रपाहुड । (२) (दोहा) वीर जिनेश्वर नमू गौतम गणधर लार । काल पंचमा आदिमैं भए सूत्रकरतार ॥१॥ ऐसें मंगलकरि श्रीकुन्दकुन्द आचार्यकृत प्राकृत गाथा वंध सूत्रपाहुड है ताकी देशभाषामय वचनिका लिखिए है; तहां प्रथमही श्रीकुन्दकुन्द आचार्य सूत्रकी महिमागर्भित सूत्रका स्वरूप जनाएँ हैं;गाथा-अरहंतभासियत्थं गणहरदेवेहिं गंथियं सम्मं । सुत्तत्थमगाणत्थं सवणा साहंति परमत्थं ॥ १॥ संस्कृत-अर्हद्भाषितार्थ गणधरदेवैः ग्रथितं सम्यक् । सूत्रार्थमार्गणार्थ श्रमणाः साधयंति परमार्थम् ॥१॥ अर्थ-जो गणधर देवनि- सम्यक् प्रकार पूर्वापरविरोधरहित गूंथ्या रच्या जो सूत्र है, सो कैसाक है सूत्र-सूत्रका जो किछू अर्थ है ताका मार्गण कहिये हेरनां जाननां सो है प्रयोजन जामैं, ऐसे सूत्र करि श्रमण कहिये मुनि हैं ते परमार्थं कहिये उत्कृष्ट अर्थ प्रयोजन जो १ मुद्रित संस्कृत सटीक प्रतिमें दूसरा चारित्रपाहुड है।
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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